नास्तिकता
खौ़फ़, लालच और अय्यारी ने God, अल्लाह या भगवान को जन्मा.
इनकी बुन्याद पर बड़े बड़े धर्म और मज़हब फले फूले,
अय्यारों ने अवाम को ठगा.
इन ठगों को धर्म ग़ुरु कहा जाता है.
कभी कभी यह निःस्वार्थ होते हैं मगर इनके वारिस चेले यक़ीनन फित्तीन होते है.
कुछ हस्तियाँ इन से बग़ावत करके धर्मों की सीमा से बाहर निकल आती हैं ,
मगर वह काल्पनिक ख़ुदा के दायरे में ही रहती हैं, इन्हें संत और सूफ़ी कहा जाता है.
संत और सूफ़ी कभी कभी मन को शांति देते है.
कभी कदार मै भी इन की महफ़िल में बैठ कर झूमने लगता हूँ.
देखा गया है कि इनकी मजारें और मूर्तियाँ स्थापित हो जाती है
और आस्था रूपी धंधा शुरू हो जाता है.
कुछ मानव मात्र इन से बेगाना होकर, मानव की ज़रूरतों को समझते हैं ,
उनके लिए ज़िंदगी को आसान बनाने का जतन किया,
ऐसे महा पुरुष मूजिद (ईजाद करने वाला) और साइंस दां होते हैं .
उन्हें नाम नमूद या दौलत की कोई चिंता नहीं,
अपने धुन के पक्के, वर्षों सूरज की किरण भी नहीं देखते,
अपना नाम भी भूल जाते हैं.
यह महान मानव संसाधनों के आविष्कारक होते हैं.
इनकी ही बख़्शी हुई राहों पर चल कर दुन्या बरक़रार रहती है.
आधी दुन्या हवा के बुत God या अल्लाह को पूजती है,
एक चौथाई दुन्या मिटटी पत्थर और धात की बनी मूर्तियाँ पूजती है,
और एक चौथाई दुन्या ला मज़हब अथवा नास्तिक है.
नास्तिकता भी एक धर्म है,
निज़ाम ए हयात है
या जीवन पद्धति कहा जाए.
यह नवीन लाइफ़ स्टाइल है.
उपरोक्त धर्म और अर्ध धर्म हमें थपकियाँ देकर अतीत में सुलाए रहते हैं
और साइंस दान भविष्य की चिंता में हमे जगाए रहते हैं.
वास्तविकता को समझिए
नास्तिकता को पहचानिए
कि इसकी कोई पहचान नहीं.
यह मानव मात्र है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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