अल्लाह की २+२+५
हलाकू के समय में अरब दुन्या का दमिश्क़ शहर इस्लामिक माले ग़नीमत से खूब फल फूल रहा था. ओलिमाए दीन (धर्म गुरू)झूट का अंबार किताबों की शक्ल में खड़ा किए हुए थे. हलाकू बिजली की तरह दमिश्क़ पर टूटा, लूट पाट के बाद इन ओलिमाओं की ख़बर ली, सब को इकठ्ठा किया और पूछा
यह किताबें किस काम आती हैं? जवाब था पढने के.
फिर पूछा - सब कितनी लिखी गईं?
जवाब- साठ हज़ार .
सवाल - - साठ हज़ार पढने वाले ? ? फिर साठ हज़ार और लिखी जाएंगी ???. इस तरह यह बढती ही जाएंगी.
फिर उसने पूछा तुम लोग और क्या करते हो?
ओलिमा बोले हम लोग आलिम हैं हमारा यही काम है.
हलाकू को हलाकत का जलाल आ गया .
हुक्म हुवा कि इन किताबों को तुम लोग खाओ.
ओलिमा बोले हुज़ूर यह खाने की चीज़ थोढ़े ही है.
हलाकू बोला यह किसी काम की चीज़ नहीं है, और न ही तुम किसी कम की चीज़ हो. हलाकू के सिपाहिओं ने उसके इशारे पर दमिश्क़ की लाइब्रेरी में आग लगा दी और सभी ओलिमा को मौत के घाट उतर दिया. आज भी इस्लामिक और तमाम धार्मिक लाइब्रेरी को आग के हवाले कर देने की ज़रुरत है.
क़ज़ज़ाक़ लुटेरे और वहशी अपनी वहशत में कुछ अच्छा भी कर गए
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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