वेद दर्शन - - -
खेद है कि यह वेद है . . . हे इंद्र ! घास खाकर तृप्त होते हुई गाय जिस प्रकार अपने बछड़े की भूख को समाप्त करती है, उसी प्रकार तुम शत्रु वाधा सम्मुख आने से पूर्व ही हमारी रक्षा कर लो.
जिस प्रकार पत्नियां युवक को घेरती हैं,
उसी प्रकार हे शत्तरुत्र इंद्र ! हम सुन्दर स्तुत्यों द्वारा तुमको घेरेंगे.
सूक्त 16-8
पंडित अपनी सुरक्षा अग्रिम ज़मानत की तरह इंद्र देव से तलब करता है.
उपमा देखिए कि जिस तरह धास खाकर गाय अपने बछड़े को तृप्त रखती है.
अनोखी मिसाल
" पत्नियाँ सामूहिक रूप में युवक को घेरती हैं"
हो सकता है वैदिक युग में यह कलचर रहा हो
कि इस पर उनके पतियों को कोई एतराज़ न होता रहा हो,
वैसे कामुक इंद्र देव की रिआयत से पत्नियों की जगह कुमारियाँ होना चाहिए था.
पंडित जी कहते हैं उसी तरह वह इन्दर देव को घेरेगे.
हिंदुओ ! कब तक इन पाखंडियों के मनुवाद के घेरे में घिरे रहोगे?
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विवाह की इच्छा से आई हुई कन्याओं को भागता देख कर परावृज ऋषि सब के सामने खड़े हुए.
इंद्र की कृपा से वह पंगु दौड़ा और अँधा होकर भी देखने लगा.
इंद्र ने यह सब सोमरस के मद में किया है.
सूक्त 15-7
आप भांग पीकर इस वेद श्लोक को जितना चाहें और जैसे चाहें कल्पनाओं की दुन्या में कूद सकते हैं मगर मैं समझता हूँ कि वेद ज्ञान को शून्य कर देता है,अज्ञानता में ढकेल देता है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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