वेद दर्शन - - -
वेद दर्शन - - - खेद है कि यह वेद है . . .
दभीति को उनके नगर से बाहर ले जाने वाले असुरों को इंद्र ने मार्ग में रोका एवं उनके प्रकाश मान आयुधों को आग में जला दिया.
इसके पश्चात इंद्र ने उन्हें बहुत सी गायें घोड़े और रथ प्रदान किए.
इंद्र ने यह सब सोमरस के नशे में किया.
सूक्त 15-4
ऐसी हरकतें कोई नशे के आलम में ही कर सकता है
कि दुश्मन के प्रकाशमान आयुधों को जला दे
फिर उसको गाएँ घोड़े और रथ दे.
इंद्र की इस हरकत को किसी ने नहीं देखा
अलबत्ता श्लोक रचैता पंडित ने ज़रूर इसे भंग के नशे में लिखा होगा .
हे यज्ञ कर्म करता अध्वर्युजनो ! तुम जो चाहते हो वह इंद्र के लिए सोमरस देने पर तुरंत मिल जाएगा.
याज्ञको ! हाथों द्वारा निचोड़ा हुवा सोम रस लाकर इंद्र के लिए प्रदान करो.
द्वतीय मंडल सूक्त 14-8
यज्ञ आयोजन करने वालों को पंडित आश्वासन सोमरस के चढ़ावे से इंद्र प्रसन्न हो जाएगे.
ध्यान रख्खें वह ओम्रस हाथों द्वारा निचोड़ा हो, न कि पैरों द्वारा अथवा मशीनों द्वारा.
धन्य है पोंगा पंडितो.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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