Tuesday 6 February 2018

Hindu Dharm Darshan-137 G 20



गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -

आज मेरे द्वारा यह प्राचीन योग यानी परमेश्वर के साथ 
अपने संबंध का विज्ञान तुम से कहा जा रहा है, 
क्योंकि तुम मेरे भक्त और मित्र हो, 
अतः तुम इस विज्ञान के दिव्य को समझ सकते हो. 
अर्जुन ने कहा ---
* सूर्य देव विवस्वान आप से पहले हो चुके (ज्येष्ट) हैं 
तो फिर मैं कैसे समझूं कि प्रारंभ में भी आप ने उन्हें उपदेश दिया था. 
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
तुम्हारे और मेरे अनेकामेक जन्म हो चुके हैं. 
मुझे तो उन सब का स्मरण है परन्तु 
हे परन्ताप ! 
तुम्हें इनका स्मरण नहीं रह सकता.
यद्यपि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूँ 
और यद्यपि मैं समस्त जीवों का स्वामी हूँ , 
तो भी प्रतियेक युग में मैं अपने आदि दिव्य रूप में प्रकट होता रहता हूँ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -3- 4 -5-6 

और क़ुरआन कहता है - - -

आधे क़ुरआन में अल्लाह अपनी बड़प्पन की डीगें मरता है कि 
वह हर राज़ को जानता है, 
वह मुसब्बुल असबाब है, 
वह बड़ी ताक़त वाला है, 
हिकमत वाला है. 
डींगें मारते मारते वह यह भी भूल जाता है कि 
वह उल्लू के पट्ठों जैसी बातें कर रहा है. 
वह कहता है,

" कि वह  रात को दिन में दाखिल कर देते हैं 
और दिन को रात में. 
वोह जानदार चीज़ों को बेजान से निकाल लेता है 
(जैसे अंडे से चूजा) 
और बे जान चीज़ों को जानदार से निकाल लेता है 
(जैसे परिंदों से अंडा)
"सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (27)

वेद और क़ुरआन में बस इतना फर्क है कि वेद का लेखक साक्षर था 
और क़ुरआन का लेखक निरक्षर.
बातें दोनों  की एक स्तर हीन  हैं.
  


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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