Monday, 23 April 2018

Hindu Dharm 171



वेद दर्शन - - -            
             
  खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

 हिरण्यरूप, हिरण्यमय इन्द्रियों वाले एवं हिरण्यवर्ण अपानपात हिरण्यमय स्थान पर बैठ कर सुशोबित होते हैं. हिरण्यदाता यजमान उन्हें दान देते हैं.  
द्वतीय मंडल सूक्त 35(10)

पंडित जी शब्दा अलंकर को लेकर एक पशु हिरन को सुसज्जित और अलंकृत कर रहे हैं, भाव का आभाव है,
हरे हरे कदम की, हरी हरी छड़ी लिए, हरि हरि पुकारती, हरे हरे लतन में. 
पिछले सूक्त34 (1) में अपने देव को भयानक पशु जैसा रूप गढ़ा था.  
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment