मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हज 22
क़िस्त-3
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सूरह हज 22
क़िस्त-3
चलिए देखें मुहम्मदी अल्लाह की दाँव पेच - - -
"निज़ामे-हयात के तहत अल्लाह अपने लिए जिन मासूम जानवरों की क़ुर्बानी चाहता है, उसकी नफ़ासत को जताता है और क़ुर्बानी के तौर तरीक़ों का बयान करता है. ख़ाना ए काबा को इब्राहीम ने बनाया इसका ख़ुलासा करते हए उनके एह्कमात बाबत हज के बतलाता है. फिर हस्बे- आदत यहूदी नबियों के नाम गिनाता है - - -
नूह, आद , समूद से मूसा तक."
सूरह हज 22 (आयत-26-44)
''सो मेरा अज़ाब कैसा हुवा, कितनी बस्तियां है जिनको हम ने हलाक किया जिनकी यह हालत थी कि वह नाफ़रमानी करती थीं, सो वह अपनी छतों पर गिरी पड़ी हैं और बहुत से बेकार कुवें ''
सूरह हज 22 (आयत-45)
जुमला ग़ौर तलब है कि ''सो वह अपनी छतों पर गिरी पड़ी हैं"
छतें गिरती नहीं, उड़ जाती हैं, पैग़म्बर साहब !
छतों पर कौन गिरी पड़ी हैं? बस्तियां? या उसके मकानात? या फिर मकानों की दीवारे? कौन सी चीज़ छतों पर गिरी कि जिसके बोझ से वह गिरीं ?
और छत सलामत रही ?
कि जिससे बस्ती के लोग हलाक हुए?
क़ुरआनी अल्लाह क्या अफ़ीमची है?
मूतरज्जिम यहाँ पर इस तरह अल्लाह की बात की रफ़ूगरी करता है कि
"गोया पहले छतें गिरीं, फिर छत पर दीवारें.
अल्लाह अपने बन्दों पर अज़ाब नाज़िल करता है,
इसके लिए पहले वह लोगों को गुमराह करता है?
''और ये लोग अज़ाब का तक़ाज़ा करते हैं हालाँकि अल्लाह अपना वादा ख़िलाफ़ न करेगा और आप के रब के पास एक दिन एक हज़ार साल के बराबर है तुम लोगों के शुमार के मुवाफ़िक़ और बहुत सी बस्तियां हैं कि जिनको हम ने मोहलत दी थीं और वह ना फ़रमानी करती थीं फिर मैं ने उनको पकड़ लिया और मेरी तरफ़ ही लौटना होगा और कह दीजिए कि ऐ लोगो ! मैं तो तुम्हारे लिए आशकारा डराने वाला हूँ."
सूरह हज 22 (आयत-47-48)
मुसलमानों!
क्या तुम ऐसे मूज़ी अल्लाह के डर से मुसलमान बने बैठे हो?
जो तुमको एक शर्री बन्दे मुहम्मद को तस्लीम करने पर मजबूर करता है? यह तुम्हारा अक़ीदा बन चुका है, तो इसे तोड़ दो
और अपनी अक़्ल पर यक़ीन करो.
मुहम्मद बार बार तुम्हें क़ुदरती आफ़तों से डरा रहे जो दस पांच साल के वक़्फ़े बाद,अकाल, बीमारी या जंगो की सूरत में आती ही है,
मगर कोई नागहानी आ ही नहीं रही?
तो मक्र का एक रास्ता उनको सूझता है कि
तुम तो चौबीस घंटों का दिन जोड़ते हो, जब कि अल्लाह का एक दिन एक हज़ार साल का होता है, तुम अगर ५० साल भी जिए तो अल्लाह महेज़ ८ घंटे, उसकी नींद भी पूरी नहीं हुई और लोग जल्दी मचा रहे हैं कि वादा कब पूरा होगा? अल्लाह का ख़ूब सूरत वादा क़यामत का, जो बन्दों को भुगतना है. मुहम्मद का मकरूह हथकंडा और मुसलामानों की ज़ंग आलूद ज़ेहन, सब यकजा हैं.
"जो शख़्स इस क़दर तकलीफ़ पहुँचावे जिस क़दर उसको दी गई थी, फिर उस शख़्स पर ज़्यादती की जाय तो अल्लाह उस शख़्स की ज़रूर मदद करेगा. बेशक अल्लाह कसीरुल अफ़ो ,कसीरुल मग्फ़िरत है.''
सूरह हज 22 (आयत-६०)
इन्तक़ाम का क़ायल मुहम्मदी अल्लाह ख़ुद को मुन्तक़िम के साथ बतलाता है. मुहम्मद ने अपनी ज़िंदगी में अपने पुराने दुश्मनों से गिन गिन कर बदला लिया है, इस्लामी तवारीख़ देखें.
''ऐ लोगो एक अजीब बात बयान की जाती है, इसे कान लगा कर सुनो. इसमें कोई शुबहा नहीं जिन की तुम अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हो, वह एक मक्खी तो पैदा नहीं कर सकते गो सब के सब जमा हो जाएँ और पैदा करना तो बड़ी बात है, इन से मक्खी कुछ छीन ले जाय तो इस से ये छुड़ा नहीं सकते .''
सूरह हज 22 (आयत-82-83)
बे शक मिटटी के बुत भला काम भी क्या कर सकते हैं?
मगर मुहम्मदी अल्लाह क्या पेड़ों में हमारे लिए बने बनाए फर्नीचर पैदा का सकता है? दोनों ही मिथ्य हैं.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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