मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह-शोअरा 26
क़िस्त-1
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सूरह-शोअरा 26
क़िस्त-1
ज़रा देखिए तो अल्लाह क्या कहता है - - -
"ये किताबे-वाज़ेह की आयतें हैं. शायद आप उनके ईमान न लाने पर अपनी जान दे देंगे. अगर हम चाहें तो उन पर आसमान से एक बड़ी किताब नाज़िल कर दें, फिर उनकी गर्दनें उस निशानी से पस्त हो जाएँ. और उन पर कोई ताजः फ़ह्माइश राहमान की तरफ़ से ऐसी नहीं आई जिससे ये बेरुख़ी न करते हो , सो उन्होंने झूठा बतला दिया, सो उनको अब अनक़रीब इस बात की हक़ीक़त मालूम हो जाएगी जिसके साथ यह मज़ाक़ किया करते थे."
सूरह -शोअरा २६ - आयत (१-६)
ये किताबे-मुज़बज़ब की आयतें हैं, ये किताबे-गुमराही की आयतें हैं.
ये एक अनपढ़ और ख़्वाहिश-ए-पैग़म्बरी की आयतें हैं जो तड़प रहा है कि लोग उसको मूसा और ईसा की तरह मान लें.
इसका अल्लाह भी इसे पसंद नहीं करता कि कोई करिश्मा दिखला सके. क़ुरआनी आयतें चौदह सौ सालों से एक बड़ी आबादी को नींद की अफ़ीमी गोलियाँ खिलाए हुए है.
मुसलमानों क़ुरआन की इन आयतों पर ग़ौर करो कि कहीं पर कोई दम है?
"क्या उन्हों ने ज़मीन को नहीं देखा कि हमने उस पर तरह तरह की उमदः उमदः बूटियाँ उगाई हैं? इसमें एक बड़ी निशानी है. और उनमें अकसर लोग ईमान नहीं लाते , बिला शुबहा आप का रब ग़ालिब और रहीम है.
सूरह -शोअरा २६ - आयत (7-9)
मुहम्मद को क़ुदरत की बख़्शी हुई नेमतों का बहुत ज़रा सा एहसास भर है. इन ज़राए पर रिसर्च करने और इसका फ़ायदा उठाने का काम दीगर क़ौमों ने किया, जिनके हाथों में आज तमाम सनअतें हैं,
और ज़मीन की ज़रख़ेज़ी का फ़ायदा भी उनके सामने हाथ बांधे खड़ा है,
मुसलमानों के हाथों में ख़ुद साख़्ता रसूल के फ़रमूदात ?
मुसलमानों के हाथों में ख़ुद साख़्ता रसूल के फ़रमूदात फ़क़त तौरेत की कहानी का सुना हुआ वक़ेआ मुहम्मद अपनी पैग़म्बरी चमकाने के लिए कुछ इस तरह गढ़ते हैं - - -
.''- - - जब आप के रब ने मूसा को पुकारा - - -
रब्बुल आलमीन :-- "तुम इन ज़ालिम लोगों यानी काफ़िरों के पास जाओ, क्या वह लोग नहीं डरते?"
मूसा :-- "ऐ मेरे परवर दिगार! मुझे ये अंदेशा है कि वह मुझको झुटलाने लगें औए मेरा दिल तंग होने लगता है और मेरी ज़बान भी नहीं चलती है , इस लिए हारून के पास भी वह्यि भेज दीजिए और मेरे ज़िम्मे उन लोगों का एक जुर्म भी है. सो मुझको अंदेशा है कि व लोग मुझे क़त्ल कर देंगे."
(वाजेह हो कि मूसा ने एक मिसरी का ख़ून कर दिया था और मुल्क से फ़रार हो गए थे.)
रब्बुल आलमीन :-- "क्या मजाल है? तुम दोनों मेरा हुक्म लेकर जाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, सुनते हैं. कहो कि हम रब्बुल आलमीन के भेजे हुए हैं कि तू बनी इस्राईल को हमारे साथ जाने दे "
फ़िरऔन :-- "क्या बचपन में हमने तुम्हें परवारिश नहीं किया? और तुम अपनी उम्र में बरसों हम में रहा सहा किए, और तुम ने अपनी वह हरकत भी की थी, जो की थी, और तुम बड़े ना सिपास हो."
मूसा :-- "उस वक़्त वह हरकत कर बैठ था और मुझ से ग़लती हो गई थी फिर जब मुझको डर लगा तो मैं तुम्हारे यहाँ से मफ़रुर हो गया था. फिर मुझको मेरे रब ने दानिश मंदी अता फ़रमाई और मुझको पैग़म्बरों में शामिल कर दिया और वह ये नेमत है जिसका तू मेरे ऊपर एहसान रख़ता है कि तू ने बनी इस्राईल को सख्त़ ज़िल्लत में डाल रक्खा था."
*** मुसलसल क़िस्त -2
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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