शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (20)
*हे भरतवंशी !
जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है
और अधर्म की प्रधानता होने लगती है ,
तब मैं अवतार लेता हूँ.
* * भगतों का उद्धार करने, दुखों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ.
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कहते हैं कि युद्ध के लिए कौरव और पांडु दोनों एक साथ भगवान के पास आए. भगवान शय्या पर सो रहे थे.
होशियार कौरव शय्या के पैताने बैठे कि भगवान् उठेंगे तो उनकी नज़रें सामने होंगी और हम पर पड़ेंगी, और वरदान मागने का मौक़ा पहले मिलेगा.
हुवा भी ऐसा, कौरवों ने सैन्य सहायता भगवान् से मांग ली और उन्हें मिल भी गई.
जब भगवान् ने सर उठा कर देखा तो पीछे पांडु खड़े थे,
पूछा तुमको क्या चाहिए ? मेरी सेना तो यह झटक ले गए.
पांडु बोले आप अपने आप को हमें दे दीजिए.
भगवान तुरंत तैयार हो गए ,
पूरे युद्ध काल में मैं तुम्हें पाठ और पट्टी पढ़ाता रहूँगा.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -4 - श्लोक -7 -8
*भगवान की भग्नत्व तो यह थी कि दोनों भाइयो को चेतावनी देते कि पुर अमन ज़िन्दगी गुज़ारो वरना अपने प्रताप से मैं तुम लोगों में से एक को लंगड़ा कर दूंगा और दूसरे को लूला.
* और क़ुरआन कहता है - - -
"कुल्ले नफ़्सिन ज़ाइक़तुलमौत''
हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है,
और तुम को तुम्हारी पूरी पूरी पादाश क़यामत के रोज़ ही मिलेगी,
सो जो शख्स दोज़ख से बचा लिया गया और जन्नत में दाखिल किया गया,
सो पूरा पूरा कामयाब वह हुवा.
और दुनयावी ज़िन्दगी तो कुछ भी नहीं,
सिर्फ धोके का सौदा है।"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (185)
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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