मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरहह मोमिनून- २३
क़िस्त-2
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सूरहह मोमिनून- २३
क़िस्त-2
मुसलमानों!
अमरीका के फ्लोरिडा चर्च की तरफ़ से एलान है कि वह ११-९ को क़ुरआन को नज़र ए आतिश करेंगे.
मुसलामानों के लिए ये वक़्त है ख़ुद से मुहासबा तलबी का,
ग़ौर व फ़िक्र का, अपने ओलिमा की ज़ेहनी ग़ुलामी छोड़ कर इस बात पर नज़रे-सानी करने का है कि वह अब अपना फ़ैसला ख़ुद करें,
मगर ईमानदारी के साथ.
मुसलमानों को चाहिए कि क़ुरआन का मुतालेआ करें, न कि तिलावत.
देखें क़ि ज़माना हक़ बजानिब है या क़ुरआन ?
मैं कुछ आयतें आपको पढ़ने का मशविरा दे रहा हूँ - - -
सूराह- आयत
बकर - १९०-१९२-२१४-२४४-२४५-
इमरान- १६७- १६८-१७०
निसा ७५-७७
मायदा- ३५
इंफाल १५-१६-१७-३९- ४३- ६४ -६७
तौबः ५- १६- २९ -४१- ४५- ४६ - ४७ -५३ - ८४ - ८६ -
मुहम्मद - २० -२१ -२२
फ़त ह १६-२०-२३
सफ़- १०-११-
यह चंद आयतें बतौर नमूना हैं, पूरा का पूरा क़ुरआन ज़हर में बुझा हुआ है.
इन आयातों में जेहाद की तलक़ीन की गई है.
देखिए कि किस हठ धर्मी के साथ दूसरों को क़त्ल कर देने के एह्कामात हैं. मुसलमान अल्लाह के हुक्म पर जहाँ मौक़ा मिलता है,
क़ुरआनी अल्लाह के मुताबिक़ ज़ुल्म ढाने लगता है.
ऐसी क़ौम को जदीद इंसानी क़द्रें ही अब तक बचाए हुए हैं,
वगरना माज़ी के आईने को देख कर जवाब देने में अगर हैवानियत पहुंचे,
तो मुसलामानों का सारी दुन्या से नाम ओ निशान ही ख़त्म हो जाय.
स्पेन में आठ सौ साल हुक्मरानी के बाद जब मुसलमान अपने आमालों के भुगतान में आए तो दस लाख मुसलमान दहकती हुई मसनवी दोज़ख़ में झोंक दिए गए.
अभी कल की बात है कि ईराक में दस लाख मुसलमान चीटियों की तरहमसल दिए गए.
ऐसा चौदह सौ सालों से चला आ रहा है, जिसकी ख़बर आलिमान दीन आप को मक्र के रूप में देते हैं कि वह सब शहादत के सीगे में दाख़िल हो कर जन्नत नशीन हुए.
इंसानों को यह सज़ाएँ क़ुरआनी आयतें दिलवाती हैं.
इसकी ज़िम्मे दारी इस्लाम ख़ोर ओलिमा की हमेशा से रही है.
आप लोग सिर्फ़ शिकारयों के शिकार हैं.
झूट को पामाल करने के लिए जब तक आप ज़माने के साथ न होंगे,
ख़ुद को पायमाल करते रहेंगे. अगर आप थोड़े से भी इंसाफ़ पसंद हैं तो ख़ुद हाथ बढ़ा कर ऐसी मकरूह इबारत आग में झोंक देंगे.
आइए देखें कि हाद्साती आयतें क्या कहती हैं - - -
"और हमने पानी से बाग़ पैदा किए खजूरों और अंगूरों के. तुम्हारे लिए इसमें बकसरत मेवे भी हैं और इसमें से खाते भी हो और एक दरख़्त जो तूरे-सीना में पैदा होता है, जो कि उगता है तेल लिए हुए और खाने वालों को सालन लिए हुए. और तुम्हारे मवेशी ग़ौर करने का मौक़ा है कि हम तुमको इन के पेट में की चीज़ पीने को देते हैं और इनमें से बअज़ को खाते भी हो . इन पर और कश्ती पर लदे घूमते भी हो."
सूरह हमोमिनून- २३- (19-22)
रेगिस्तानी अल्लाह को खजूर, अंगूर और ज़ैतून के सिवा, आम, अमरुद और सेब जैसे दरख़्तों का पता भी नहीं है.
इरशाद हुवा है की मवेशी के पेट से पीने की चीजें भी पैदा कीं .
ज़ाहिर है कि इसमें से दो चीजें ही आती हैं. दूध और मूत.
दूध तो पिया भी जाता है और कभी कभी मूत भी पिया जाता है.
ख़ुद मुहम्मद भी इसके क़ायल थे.
एक हदीस के मुताबिक़ मुहम्मद के पास किसी दूर बस्ती से पेट के कुछ मरीज़ आए, तो उन्होंने उनको अपने फ़ार्म हॉउस में ये कहके भेज दिया कि वहां पर ऊंटों का दूध और मूत पीकर यह लोग सेहत याब हो जाएँगे. और वह वहां राहक़र ठीक भी हो गए, ऐसे ठीक हुए कि फ़ार्म हॉउस के रखवाले को मार कर मुहम्मद के सभी ऊंटों को लेकर फ़रार हो गए.
मुहम्मद के सिपाहियों ने उन्हें जा धरा. ज़ालिम मुहम्मद ने उन्हें ऐसी सज़ा दी कि सुन कर कलेजा मुंह को आए.
अल्लाह काफ़िरों को जब दोज़ख़ की सज़ाएं तजवीज़ करता है तो मुहम्मद की ज़ेहनियत इस हदीस को लेकर नज़रों के सामने घूम जाती है.
"कश्ती का ज़िक्र मुहम्मद के मुँह पर आए तो क़ुरआन का तहक़ीक़ी मौज़ू ग़ायब हो जाता है और वह बार बार नूह के साथ बह निकलते हैं. कश्ती का नूह से चोली दामन का साथ जो हुवा. कश्ती का नाम मुहम्मद के मुँह पर आए तो जेहन में नूह दौड़ने लगते हैं
सूरह हमोमिनून- २३- (19-22)
फिर शुरू हो जाती है नूह की कथा. नूह के नाम से मुहम्मद अपनी आप बीती मन गढ़ंत जड़ने लगते हैं. मुलाहिज़ा हो एक बार फिर नूह के सफ़ीने पर क़ुरआन की सवारी - - -
"और हमने नूह को इनकी क़ौम की तरफ़ पैग़म्बर बना कर भेजा सो उन्हों ने क़ौम से फ़रमाया कि ऐ मेरी क़ौम! अल्लाह की ही इबादत किया करो, उसके आलावा कोई माबूद बनाने के लायक़ नहीं है, तो क्या डरते नहीं हो. बस कि उनकी क़ौम में जो काफ़िर मालदार थे, कहने लगे कि ये शख़्स बजुज़ इसके कि तुम्हारी तरह एक आदमी है और कुछ भी नहीं, इसका मतलब ये है कि तुम से बरतर बन कर रहे और अल्लाह को मंज़ूर होता तो किसी फ़रिश्ते को भेजता. हमने ये बात अपने बड़ों में नहीं सुनीं. बस कि ये एक आदमी है जिसको जूनून हो गया है. नूह ने कहा ऐ मेरे रब! मेरा बदला ले, वजेह ये है कि उन्हों ने मुझको झुटलाया. पस कि हमने उनके पास हुक्म भेजा कि तुम कश्ती तैयार कर लो हमारी निगरानी में फिर जब हमारा हुक्म आ पहुँचे और ज़मीन से पानी उबलना शुरू हो तो हर क़िस्म में एक एक नर और एक एक मादा यानी दो अदद इस में दाख़िल कर लो और अपने घर वालों को भी इस लिहाज़ के साथ कि जिस पर इस में से हुक्म नाज़िल हो चुका हो. और हम से काफ़िरों के बारे में कोई गुफ़्तगू न करना. वह सब ग़र्क किए जाएँगे. फिर जिस वक़्त तुम और तुम्हारे साथी कश्ती पर बैठ चुको तो कहना शुक्र है अल्लाह का जिसने मुझे काफ़िरों से नज़ात दी. और यूं कहना कि रब मुझको बरकत से उतारियो. और आप सब उतारने वालों में से सब से अच्छे हैं इसमें बहुत सारी निशानियाँ हैं और हम आज़माते हैं."
सूरह हमोमिनून- २३- (23)
इस तरह मुहम्मद अपना दिमागी फ़ितूर ज़ाहिर करते हुए अहले मक्का को समझाते हैं, बल्कि धमकाते हैं कि वह भी नूह की तरह ही पैग़म्बर है और उनकी बद दुआ से सब के सब गर्क़-आब हो जाओगे.
इस तरहअपने मुख़ालिफ़ काफ़िरों से नज़ात भी चाहते है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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