मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नूर- 24
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सूरह नूर- 24
क़िस्त-1
यह सूरह मुहम्मद की ज़ाती ज़िन्दगी का एक बड़ा सानेहा के रद्दे-अमल में नाज़िल हुई है. दौराने-सफ़र बूढ़े रसूल की नवख़ेज़ बीवी आयशा पर बद चलनी का इलज़ाम लग गया था. जब वह सफ़र में अपने क़ाफ़िले से बिछड़ गई थीं. थोड़ी देर बाद ऊँट पर सवार, पराए मर्द के साथ आती दिखाई पड़ीं. वह नामहरम (अपरिचित) ऊँट की नकेल थामे उसके आगे आगे पैदल चला आ रहा था.
इस पर क़ाफ़िले के कुछ शर-पसंद लोगों ने आयशा पर इलज़ाम तराशी कर दी. माहौल में चे-में गोइयाँ होने लगीं. इलज़ाम तराशों का पलड़ा भारी होता देख कर ख़ुद अल्लाह के रसूल भी उन लोगों के साथ हो गए.
आयशा इस सदमें को बर्दाश्त न कर सकी और शदीद बीमार हो गई.
एक महीने बाद मुहम्मद में ज़ेह्नी बदलाव आया और वह पुरसा हाली के लिए आयशा के पास पहुंचे.
आयशा ने नफ़रत से उनकी तरफ़ से मुँह फेर लिया.
मुहम्मद ने जिब्रीली पुड़िया आयशा को थमाने की कोशिश की,
कि अल्लाह की वह्यि (ईश-वाणी) आ गई है कि तुम निर्दोष हो.
आयशा ने कहा "मैं क्या हूँ ,ये मैं जानती हूँ और मेरा अल्लाह,
मुझे किसी की शहादत की ज़रुरत नहीं है".
बाप अबू बकर के समझाने बुझाने पर एक बार फिर आयशा मान गई,
जैसे छः साल की उम्र में बूढ़े के साथ निकाह के लिए मान गई थी
और मुहम्मद को उसने मुआफ़ कर दिया.
देखिए कि इस पूरी सूरह में मुहम्मद ने कैसे गिरगिट की तरहरंग बदला है. - - -
"ये एक सूरह है जिसको हमने नाज़िल किया है और हमने इसको मुक़र्रर किया है और हमने इस सू रहमें साफ़ साफ़ आयतें नाज़िल की हैं."
सूरह नूर - 24 आयत (१)
मुहम्मद के साथ इस हाद्साती वक़ेआ को गुज़रे एक माह हो चुके थे.
इस बीच पूरे माहौल में उथल-पुथल मची हुई थी जिससे मुहम्मद ख़ुद बहुत परेशान थे, एक महीने के बाद जिब्रीली वहियों का रेला आया और मुहम्मदी अल्लाह ने आयते-नूर नाज़िल किया जिसे पढ़ कर मुहम्मद की अक़्ल और उनकी सोच पर तरस आती है और तरस आती है मुसलमानों की ज़ेहनी पस्ती पर कि वह इन हेर-फेर की बातों को अल्लाह जल्ले शानाहू का फ़रमान मानते हैं. जिसे अल्लाह साफ़ साफ़ आयत कहता है,
मुलाहिज़ा हो कि वह कितनी गन्दी गन्दी हैं.
"ज़िना कराने वाली औरतों और ज़िना करने वाले मर्द, सो इनमें से हर एक को सौ सौ दुर्रे मारो. तुम लोगों को इन दोनों पर अल्लाह तअला के मुआमले में ज़रा भी रहेम नहीं होना चाहिए, अगर अल्लाह पर और क़यामत पर ईमान रखते हो, सो दोनों के सज़ा के वक़्त मुसलमानों की एक जमाअत वहां हाज़िर राहना चाहिए."
सूरह नूर - 24 आयत (2)
नाज़ुक सी छूई मुई पे, काज़ी के ये सितम,
पहले ही संग सार के, ग़ैरत से मर गई.
मुसलमानों!
हमारी बहनें और बेटियाँ क़ुदरत का हसीन तरीन शाहकार हैं, उनमें टीन एज में क़ुदरत की ही बख़्शी हुई एक उमंग आती है, उनसे भूल चूक फ़ितरी अलामत है, यही बात लड़कों पर भी सादिक़आती है.
ज़ालिम मुहम्मदी अल्लाह उनके लिए ये हैवानी क़ानून नाज़िल करता है ? नज़रें उठाइए, ज़माना कहाँ से कहाँ पहुँच गया है.
औरतों और मर्दों पर मूतअद्दित मुक़ामआ जाया करते है,
मुख़्तलिफ़ हालात पैदा हो जाते हैं, कि लग्ज़िशें हो जाया करती हैं.
द इस आयत के नाज़िल करने वाले मुहम्मद इन हालात के शिकार हुए हैं, शिकार ही नहीं, शिकार किया भी है. उनका ज़मीर तो मुर्दा हो गया था, जब उनकी करनी का आइना उनके हम अस्र उनको दिखलाते थे तो बड़ी बेशर्मी से कह दिया करे हैं कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ, मेरे सारे गुनाह मुआफ़ हैं.
मुहम्मद एक कुरूर नर पिशाच का नाम है जिसकी करनी की सज़ा आप लोग भुगत रहे हैं.
"ज़ानी (दुराचारी) निकाह भी किसी के साथ नहीं करता, बजुज़ ज़ानिया (दुराचारनी) या मुशरिका (मूर्ति-पूजक) के, और ज़ानिया के साथ भी और कोई निकाह नहीं करता बजुज़ ज़ानी या मुशरिक के. और ये मुसलमान पर हराम किया गया है. और जो लोग तोहमत लगाएँ पाक दामन औरतों पर और फिर चार गवाह ना ला सकें, उनको अस्सी दुर्रे रसीद किए जाएँ.और आगे इनकी कोई गवाही भी क़ुबूल की जाए."
सूरह नूर - 24 आयत (3-4)
पीर पैग़मबर और महान आत्माएँ बड़ी से बड़ी ग़लतियों को माफ़ कर दिया करते हैं, साज़िशी रसूल इंसानों की छोटी छोटी ख़ताओं पर कैसे कैसे ज़ुल्म ढाने के पैग़ाम पेश कर रहे हैं?
अभी T .V . पर एक ख़ातून को ज़मीन में दफ़्न करते हुए मुहम्मदी अल्लाह के जल्लाद उस पर आख़री दम में संगसारी करते हुए उसकी शक्ल बिगाड़ रहे थे, देख कर कलेजा मुँह में आ गया.
उफ़! मुहम्मद के दीवाने और दीवानगी की हद.
मदीने में एक था "अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल"
यह अंसारी नौजवान मदीने के निगहबानी के लिए उस वक़्त चुनाव लड़ने की तय्यारी ही कर रहा था जब मुहम्मद हिजरत करके मक्के से मदीना आए. मुहम्मद की आमद से इस के रंग में भंग पड़ गया था. पहले भी इससे मुहम्मद की नोक-झोक हो चुकी थी. अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल ने क़बीलाई माहौल में इस्लाम तो क़ुबूल कर लिया था मगर मुहम्मद को ज़क देने के कोई भी मौक़ा न चूकता.
मुहम्मद का तरीक़ा था कि जंगी लूट-पाट और मार-काट (जेहाद) पर जब जाते तो अपनी बीवियों में से किसी एक का इंतेख़ाब करके साथ ले जाते. इस जेहाद में नंबर था आयशा का.
लूट पाट और मार-काट करके किसी जेहाद से मुहम्मद वापस मदीने आ रहे थे कि क़ाफ़िला पड़ाव के लिए रुका. आयशा ऊँट के कुजावा (वह हौद जो पर्दा नशीन औरतों के लिए होता है) से बहार निकलीं कि पेशाब पाख़ाने से फ़ारिग़ हो लें. फ़ारिग़ होकर जब वह वापस आईं तो देखा उनका हार उनके गले में न था, तलाश के लिए वापस उस जगह तक गईं और तलाश करती रहीं. इसमें उनको इतना वक़्त लगा कि जंगी क़ाफ़िला आगे के लिए कूच कर चुका था.
आयशा कहती हैं कि
"यह देख कर कि लश्कर नदारद था, मुझे चक्कर आ गया और मैं बैठ गई कि अब क्या होगा मगर उम्मीद थी कि कोई वापस इनकी तलाश में आएगा. उनको नींद आ गई बैठे बैठ सो गईं कि लश्कर के पीछे का निगराँ "सफ़वान इब्ने मुअत्तल'' आया जो उनको देख कर पहचान गया. उसने आयशा को ऊँट पर बिठाया और ख़ुद ऊँट की नकेल पकड़ कर पैदल आगे आगे चला."
क़ाफ़िले ने आयशा को ऊँट पर सवार एक ना महरम के साथ आते हुए देखा तो हैरत में पड़ गया, उसमें चे-में गोइयाँ होने लगीं. तेज़ तर्रार "अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल" ने आयशा पर साज़िश के साथ बद
फ़ेअली का इलज़ाम लगा दिया और इस दलील के साथ बोहतान तराशी की कि लश्कर के ज़्यादा लोग उसकी बात को मान गए, यहाँ तक कि अल्लाह के नबी बने मुहम्मद भी भीड़ की आवाज़ में आवाज़ मिलाने लगे.
इस वक़ेआ के बाद "सू रहनूर'' उतारी और अपने मुआमले को अपनी उम्मत के लिए कोड़े और संग सारी करके औरत को जिंदा दफ़्न का क़ानून बना डाला.
"अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल" ने हमेशा मुहम्मद के साथ बुग्ज़ रखा, उसके जीते जी मुहम्मद उसका कुछ ना बिगाड़ सके, उसके मरने के बाद उससे बदला यूं लिया - - -
जाबिर कहते हैं कि "अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल" के मरने के बाद मुहम्मद उसकी क़ब्र पर गए, लाश को बाहर निकाला और उसके मुँह में थूका और उसको अपना उतरन पहनाया.(बुखारी ६१५)
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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