खेद है कि यह वेद है (64)
परम सेवनीय अग्नि की उत्तम कृपा मनुष्यों में उसी प्रकार परम पूजनीय है ,
जिस प्रकार दूध की कामना करने वाले देवों के लिए
गाय का शुद्ध, तरल एवं गरम दूध
अथवा गाय मांगने वाले मनुष्य को दुधारू गाय.
चतुर्थ मंडल
सूक्त 6
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
वेद कर्मी सदा ही लोभ से ओत-प्रोत रहते हैं.
इनमें मर्यादा की कोई गरिमा कहीं नज़र नहीं आती.
इनके देव भी लोभी और
परम देव भी लोभी ,
एक कटोरा दूध के लिए इन देवों की राल टपकती रहती है.
परम सेवनीय अग्नि की उत्तम कृपा मनुष्यों में उसी प्रकार परम पूजनीय है ,
जिस प्रकार दूध की कामना करने वाले देवों के लिए
गाय का शुद्ध, तरल एवं गरम दूध
अथवा गाय मांगने वाले मनुष्य को दुधारू गाय.
चतुर्थ मंडल
सूक्त 6
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
वेद कर्मी सदा ही लोभ से ओत-प्रोत रहते हैं.
इनमें मर्यादा की कोई गरिमा कहीं नज़र नहीं आती.
इनके देव भी लोभी और
परम देव भी लोभी ,
एक कटोरा दूध के लिए इन देवों की राल टपकती रहती है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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