Thursday, 28 May 2020

खेद है कि यह वेद है (64)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (64)

परम सेवनीय अग्नि की उत्तम कृपा मनुष्यों में उसी प्रकार परम पूजनीय है , 
जिस प्रकार दूध की कामना करने वाले देवों के लिए 
गाय का शुद्ध, तरल एवं गरम दूध 
अथवा गाय मांगने वाले मनुष्य को दुधारू गाय.
चतुर्थ मंडल 
सूक्त 6 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
वेद कर्मी सदा ही लोभ से ओत-प्रोत रहते हैं. 
इनमें मर्यादा की कोई गरिमा कहीं नज़र नहीं आती. 
इनके देव भी लोभी और 
परम देव भी लोभी , 
एक कटोरा दूध के लिए इन देवों की राल टपकती रहती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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