Friday 22 June 2018

सूरह कहफ़ 18 (क़िस्त-3)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह कहफ़ 18 
(क़िस्त-3) 


(इस क़िस्त में ब्रेकट में रखे अल्फ़ाज़ तर्जुमा निगार के हैं, अल्लाह के नहीं.ऐसे ही पूरे क़ुरआन में तर्जुमान अल्लाह का उस्ताद बना हुवा है.)

''सो हमने इस ग़ार में इनके कानो पर सालहा साल तक (नींद का पर्दा) डाल दिया. फिर हमने उनको उठाया ताकि हम मालूम कर लें इन दोनों गिरोहों में से कौन सा (गिरोह) इनके रहने की मुद्दत से ज़्यादः वाकिफ़ है. हम इनका वाक़ेआ आप से ठीक ठीक बयान करते हैं, वह लोग चन्द नव जवान थे जो अपने रब पर ईमान लाए थे, हमने उनकी हिदायत में और तरक्क़ी कर दी. और हमने उनके दिल और मज़बूत कर दिए, जब वह (दीन में) पुख़ता होकर कहने लगे हमारा रब तो वह है जो आसमानों और ज़मीन का रब है. हम तो इसे छोड़ कर किसी माबूद की इबादत न करेंगे. (क्यूँकि) इस सूरत में यक़ीनन हम ने बड़ी बेजा बात कही है, जो हमारी क़ौम है, उन्हों ने ख़ुदा को छोड़ कर और माबूद क़रार दे रखे हैं. ये लोग इन (माबूदों पर) कोई खुली दलील क्यूँ नहीं लाते? सो इस शख़्स से ज़्यादः कौन गज़ब ढाने वाला शख़्स होगा जो अल्लाह पर ग़लत तोहमत लगावे. और जब तुम उन लोगों से अलग हो गए हो और उनके माबूदों से भी, मगर अल्लाह से अलग नहीं हुए तो तुम फलाँ ग़ार में जाकर पनाह लो. तुम पर तुम्हारा रब अपनी रहमत फैला देगा और तुम्हारे लिए तुम्हारे इस काम में कामयाबी का सामान दुरुस्त करेगा.''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(८-१६)

कहानी का मुद्दा मुहम्मद के बत्न में ही रह गया '' दोनों गिरोहों में से कौन सा (गिरोह) इनके रहने की मुद्दत से ज़्यादः वाकिफ़ है.'' कौन से दो गिरोह? 
अल्लाह ही जानें या फिर मुल्ला जी जानें. 
फिर अल्लाह झूटों क़ी तरह बातें करता है

''हम इनका वाक़ेआ आप से ठीक ठीक बयान करते हैं'' 
और झूट उगलने लगता है कि वह नव मुस्लिम थे, इस लिए उसने ''उनकी हिदायत में और तरक्क़ी कर दी. और हमने उनके दिल और मज़बूत कर दिए'' 

यानी ये चारो मक्का वालों के लिए फेंका जाता है कि वह बेजा बातें करते हैं कि मूर्ति पूजा करते हैं और उनके फेवर में कोई दलील नहीं रखते. 
मुहम्मद ऐसे लोगों को गज़ब ढाने वाला बतलाते है. 
मक्का वालों को आप बीती बतलाते हैं कि वह इस्लाम का झंडा लेकर उन क़ुरैशियों और अरबों से अलग हो गए.
मुहम्मद की हर बात में सस्ती सियासत और बेहूदा पेवंद कारी की बू आती है. अफ़सोस कि मुसलमानों क़ी नाकें बह गई हैं. 
ऐसा घिनावना मज़हब जिसको अपना कहने में शर्म आए. 
बस इन को इस्लामी ओलिमा इस के लिए, मारे और बांधे हुए हैं.

''और ऐ (मुख़ातब) तू इनको जागता हुवा ख़याल करता है, हालांकि वह सोते थे. और हम उनको (कभी) दाहिनी तरफ़ और (कभी) बाएँ तरफ़ करवट देते थे और इनका कुत्ता दह्जीज़ पर अपने दोनों हाथ फैलाए हुए था. अगर ऐ (मुख़ातब) तू इनको झाँक कर देखता तो उनसे पीठ फेर कर भाग खड़ा होता, तेरे अन्दर उनकी दहशत समां जाती और इस तरह हमने उनको जगाया ताकि वह आपस में पूछ ताछ करें. उनमें से एक कहने वाले ने कहा कि तुम (हालाते-नर्म) में किस क़दर रहे होगे ? बअज़ों ने कहा कि (ग़ालिबन) एक दिन या एक दिन से भी कुछ कम रहे होंगे (दूसरे बअज़ों ने) कहा ये तो तुम्हारे ख़ुदा को ही ख़बर है कि तुम किस क़दर रहे. अब अपनों में किसी को ये रुपया दे कर शहर की तरफ़ भेजो फिर वह शख़्स तहक़ीक़ करे कि कौन सा खाना (हलाल) है. सो इसमें से तुम्हारे पास कुछ खाना ले आवे और (सब काम) ख़ुश तदबीरी (से) करे और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे. (क्यूं कि अगर) वह लोग कहीं तुम्हारी ख़बर पा जावेंगे तो तुमको या तो पत्थर से मार डालेगे फिर (जबरन) अपने तरीकों में ले लेंगे और (ऐसा हुवा तो) तुम को भी फ़लाह न होगी. और इस तरह (लोगों को) मुत्तेला कर दिया. ताकि लोग इस बात का यक़ीन कर लें कि अल्लाह तअला का वादा सच्चा है. और यह कि क़यामत में कोई शक नहीं. (वह वक़्त भी क़ाबिले-ज़िक्र है) जब कि (इस ज़माने के लोग) इन के मुआमले में आपस में झगड़ रहे थे. सो लोगों ने कहा उनके पास कोई इमारत बनवा दो, इनका रब इनको खूब जनता है. जो लोग अपने काम पर ग़ालिब थे उन्हों ने कहा हम तो उनके पास एक मस्जिद बनवा देंगे. (बअज़े लोग तो) कहेंगे कि वह तीन हैं और चौथा उनका कुत्ता है. और (बअज़े) कहेंगे वह पाँच हैं छटां उनका कुत्ता (और) ये लोग बे तहक़ीक़ बात को हाँक रहे हैं और (बअज़े) कहेगे कि वह सात हैं, आठवां उनका कुत्ता. आप कह दीजिए कि मेरा रब उनका शुमार ख़ूब (सही सही) जानता है उनके (शुमार को) बहुत क़लील लोग जानते हैं तो सो आप उनके बारे में बजुज़ सरसरी बहेस के ज़्यादः बहेस न कीजिए और आप उनके बारे में इन लोगों से किसी से न पूछिए.''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(१८-२२)

मुसलमान संजीदगी के साथ ये पाँच आयतें अपने ज़ेहनी और ज़मीरी कसौटी पर रख कर कसें. 
अल्लाह जो साज़गारे-कायनात है, इस तरह से आप के साथ मुख़ातिब है ? 
इसके बात बतलाने के लहजे को देखिए, कहता है कि कुत्ता दोनों हाथ फैलाए था? चारों पैर के सिवा कुत्ते को हाथ कहाँ होते हैं जो इंसानों की तरह फैलाता फिरे. 
अपना क़ुरआनी मसअला हराम, हलाल को उस वक़्त भी मुहम्मद लागू करना नहीं भूलते. खुद इंसानी जानों को पथराव करके सज़ा की ज़ालिमाना उसूल को उन पहाड़ियों का बतलाते हैं जो सैकड़ों साल इन से पहले हुवा करते थे, 
हर मौके पर अपनी क़यामत की डफ़ली बजाने लगते हैं. 
पागलों की तरह बातें करते है, 
एक तरफ़ उन लोगों को तनहा छुपा हुवा बतलाते हैं, 
दूसरी तरफ इकठ्ठा भीड़ दिखलाते हैं कि कोई कहता है इन असहाब के लिए इमारत बनवा देंगे और अपने काम में ग़ालिब लोग उनके लिए मस्जिद बनवाने की बातें करते हैं. 
उनकी तादाद पर ही अल्लाह क़यास आराईयाँ करता है कि कुत्ते समेत कितने असहाबे-कुहफ़ थे? 
कहता है बंद करो क़यास आराईयाँ असली शुमार तो मैं ही जनता हूँ कि मैं अल्लाह हूँ, जो हर जगह गवाही देने के लिए मुहम्मद के लिए बे किराये के टट्टू की तरह हाज़िर रहता हूँ.

मुसलमानों!
 क्या है तुम्हारे इस क़ुरआन में? जो इसके पीछे बुत के पुजारी की तरह आस्था वान बने खड़े रहते हो? 
तुमसे बेहतर वह बुत परस्त हैं जो बामानी तहरीर तो रखते और गाते हैं. 
यह जिहालत भरी लेखनी क्या किसी के लिए इअबादत की आवाज़ हो सकती है? 
कोई नहीं है तुम्हारा दुश्मन, 
तुम ख़ुद अपने मुजरिम और दुश्मन हो .
ऐसी वाहियात तसनीफ़ को पढ़ के हर इन्सान तुमसे नफ़रत करेगा कि तुम 
''पहाड़ वाले उसकी अजाएबात में से कुछ तअज्जुब की चीज़ हो'' 
तुम इस धरती का हक़ अदा करने की बजाए, उस पर बोझ हो, 
क्यूं कि तुम्हारा यक़ीन तो इस धरती पर न होकर ऊपर पे है. 
तुम्हारी बेग़ैरती का आलम ये है कि धरती के लिए किए गए ईजाद को सब से पहले भोगने लगते हो, चाहे हवाई सफ़र हो या टेलीफोन, या जेहाद के लिए भी गोले बारूद जो कचरा की तरह बेकार हो चुका है, क्यूँकि तुम्हारे लिए वही आइटम बम है. 
वह अपने पुराने हथियार तुम को बेच कर ठिकाने लगाते हैं, 
तुम उन्हें सोने के भाव ख़रीद लेते हो. 
तुम उनको लेकर मुस्लिम देशों में ही उन बेगुनाहों का ख़ून बहाते हो 
जो हराम ज़ादे ओलिमा के फन्दों में है. 
शर्म तुमको मगर नहीं आती. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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