वेद दर्शन
खेद है कि यह वेद है . . .
तां पूष...........................शेष:|| (अथर्व वेद १४-२-३८) अर्थ: हे पूषा, इस कल्याणी औरत को प्रेरित करो
ताकि वह अपनी जंघाओं को फैलाए
और हम उनमें लिंग से प्रहार करें.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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