वेद गीता या क़ुरआन को सरल भाषा में, मैं जब उल्लेख करने लगता हूँ,
तो इसके ज्ञानी विद्वान अपनी विद्वता की बैसाखी मुझे थमाने लगते हैं.
सन्दर्भ संपर्क और प्रसंग के प्रवाह में बहा कर वह मुझे मूरख सिद्ध करना चाहते हैं.
मुझे इन ग्रंथों के वितार में जाने की ज़रुरत नहीं पड़ती,
मैं चिन्तक हूँ, पाठक नहीं.
अपनी थोड़ी सी ज़िन्दगी को पठन पाठन में नहीं झोंकना चाहता.
जो बात मुझे अलौकिक और अन्याय पूर्ण मिलती है,
उसके विरोध में मेरी लेखनी खड़ी हो जाती है.
मिसाल के तौर पर भगवान् कृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं,
तो यह उनकी मानव मर्यादा नहीं.
युद्ध हर हाल में विनाश होता है,
इसके लिए कोई भगवन प्रेरित करे ?
तो भ्रम होता है कि वह भगवान क्या, अच्छा इंसान भी नहीं.
प्रसंग और संदर्भ की बात उनके दलाल करते हैं.
क्यूंकि उनका विषय है यह, यही आधार है, उनके जीवन का.
अपनी अंतर आत्मा पर तलवार चला कर वह स्वयं सिद्ध विजेता बने हुए है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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