खेद है कि यह वेद है (20)
विवाह की इच्छा से आई हुई कन्याओं को भागता देख कर परावृज ऋषि सब के सामने खड़े हुए.
इंद्र की कृपा से वह पंगु दौड़ा और अँधा होकर भी देखने लगा.
इंद्र ने यह सब सोमरस के मद में किया है.
सूक्त 15-7
आप भांग पीकर इस वेद श्लोक को जितना चाहें और जैसे चाहें कल्पनाओं की दुन्या में कूद सकते हैं मगर मैं समझता हूँ कि वेद ज्ञान को शून्य कर देता है,अज्ञानता में ढकेल देता है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
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