Friday, 22 February 2019

खेद है कि यह वेद है - - -22



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (22)

इंद्र ने अपनी शक्ति द्वारा इधर उधर जाने वाले पर्वतों को अचल बनाया, 
मेघों के जल को नीचे की ओर गिराया, 
सब को धारण करने वाली धरती को सहारा दिया 
और अपनी बुद्धिमानी से आकाश को नीचे गिरने से रोका है.  
द्वतीय मंडल सूक्त 17(5)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

कुरआन कहता है कि आसमान बिना खंबे की छत है 
और वेद भी  कुछ ऐसा ही कहता है. 
कुरआन की बातें सुनकर हिन्दू मज़ाक़ उड़ाता है, 
और कहता है वेद को अपमानित मत करो 
क्योकि यह सब  से पुराना ग्रन्थ है. 
दोनों को ग़लत फ़हमी है कि योरोपियन इन्ही ग्रंथो से बहु मूल्य नुस्खे उड़ा कर ले गए हैं और आज आकाश को नाप रहे हैं. 
कितनी बड़ी विडंबना है - - -  इंसानी वैचारिकता के लिए.

' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment