खेद है कि यह वेद है (25)
हे धन स्वामी इंद्र एवं ब्रहस्पति !
तुम्हारी सभी स्तुत्याँ सत्य हैं, तुम्हारे ब्रत को जल नष्ट नहीं कर सकता,
रथ एवं जुते हुए घोड़े जिस प्रकार घास की ओर दौड़ते हैं,
उसी प्रकार तुम हमारे हवि के सम्मुख आओ.
ऋग वेद -द्वतीय मंडल सूक्त 24(12)
महाराज कह रहे हैं घास को देख कर घोडा तो घोडा,
रथ भी दौड़ता है.
और इन्हीं दोनों की तरह अपने देवों को हवि को
देख कर दौड़ने की राय देते हैं.
पता नहीं कि इनके देव भी पशुओं के स्वाभाव के हैं ??
इनका क्या भरोसा कि देवों को यह पशु बना दें,
या पशुओं को माता.
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