खेद है कि यह वेद है (24)
मन्तर अर्थात मन+तंत्र
वेद श्लोक को उर्फ़ आम में वेद मंत्र कहा जाता है,
अर्थात मन का तंत्र.
मन तो हर समय उड़ा करता है,
कभी यहाँ तो कभी वहाँ.
कभी इस शाख पर तो कभी उस शाख पर.
यह मनमौजी, मन चला होता है.
अस्थिर.
बचपन में मैं मदारी के मन्त्र सुनता था तो कुछ समझ में न आता.
बड़े होने पर पता चला कि न समझ में आने वाले शब्द मन्तर होते हैं.
हमारे भारत में भी मुख्यता दो भाषाएँ ऐसी हैं जो मंतर प्रधान हैं
और दोनों को मदारियों के सिवा कोई नहीं समझ पाता.
पहली संस्कृत है और दूसरी अरबी.
इन्हीं दोनों भाषाओँ में मदारी मन्त्र बघारते हैं.
शुकर है नव युग का कि विद्वानों ने हमें
वेद और क़ुरान जैसी किताबों का हर भाषा में अनुवाद करके दे दिया.
ज़रुरत है कि हम इन्हें आस्था का चश्मा उतार कर
खुली आखों से पढ़ें और वास्तविकता को स्वीकारें.
मन की बातों को मन में आने जाने दें,
दिल की आवाज़ सुनें. ह्रदय ध्वनि को माने.
ह्रदय ध्वनि हमेशा लौकिक और प्रकृतिक सत्य पर आधारित होती है,
आडंबरों और आस्थाओं से परे होती है ह्रदय ध्वनि.
ह्रदय ध्वनि को ज़मीर की आवाज़ भी कहते हैं.
ह्रदय ध्वनि या ज़मीर की आवाज़ अथवा अंतर आत्मा की पुकार
को सुनने वाला मानव, मानव से महा मानव हो जाता है.
सम्पूर्ण ऋग वेद मंगाकर पढ़ें और जानें कि आने वाला समय आपकी नस्लों को कहाँ ले जाना चाहता है ?
ब्रह्मांड की खोज में या
काँवडयों की काँवड यात्रा
अथवा हज के सफ़र में.
खेद है कि यह वेद है (23)
हे बृहस्पति ! जो तुम्हें हव्य अन्न देता है,
उसे तुम न्याय पूर्ण मार्ग से ले जाकर पाप से बचाते हो.
तुम्हारा यही महत्त्व है कि तुम यज्ञ का विरोध करने वाले को
कष्ट देते एवं शत्रुओं की हिंसा करते हो.
द्वतीय मंडल सूक्त 23(4)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
ब्रह्मणस्पति और बृहस्पति भी इंद्र देव की तरह कोई इनके देव होंगे.
इनके सामने पुरोहित उन लोगों को नाश कर देने की तमन्ना करते हैं
और उनको उनका हिंसक महत्व बतलाते हैं.
उनको हिंसा करने का निमंत्रण देते हैं.
एक ओर हिन्दू अहिंसा का पुजारी है कि वह पानी भी छान कर पता है
और दूसरी ओर हर मौके पर हवन कराता है,
कि हे देव तुम हिंसा करो, हम पर पाप लगेगा.
ठीक ही कहा है किसी ने - - -
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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