मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****
सूरह हाक़्क़ा- 69 = سورتہسورتہ الحاققہ
(मुकम्मल)
"वह होने वाली चीज़ कैसी कुछ है, वह होने वाली चीज़,
आपको कुछ ख़बर है, कैसी कुछ है, वह आने वाली चीज़.
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (1-3)
मुहम्मद के सर पे क़यामत का भूत था,या साज़िशी दिमाग़ की पैदावार,
मुहम्मद के सर पे क़यामत का भूत था,या साज़िशी दिमाग़ की पैदावार,
कहना ज़्यादः बेहतर होगा साज़िशी दिमाग़.
वह क़ुरआन को उसी तरह बकते हैं जैसे एक आठ साल के बच्चे को बोलने के लिए कहा जाए, उसके पास अलफ़ाज़ ख़त्म हो जाते है, वह अपनी बात दोराने लगता है. उसका दिमाग़ थक जाता है तो वह भाषा की क़वायद भी भूल जाता है.
जो मुँह में आता है, आएँ बाएँ शाएँ बकने लगता है
अगर सच्चाई पर कोई आ जाए तो क़ुरआन का निचोड़ यही है.
''सुमूद और आद ने इस खड़ खड़ाने वाली चीज़ की तक़ज़ीब की, सुमूद तो एक ज़ोर की आवाज़ से हलाक कर दिए गए और आद जो थे, एक तेज़ तुन्द हवा से हलाक कर दिए गए.
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (4-6 )
आपने कभी आल्हा सुना हो तो समझ सकते हैं कि उसके वाक़ेआत सारे के सारे लग्व और कोरे कल्पित होते हैं, इसके वाद भी अल्फ़ाज़ की बन्दिश और सुख़नवरी आल्हा को अमर किए हुए है कि सुन सुन कर श्रोता मुग्ध हो जाता है.
उसके आगे मुहम्मद का क़ुरआनी आल्हा ज़ेहन को छलनी कर जाता है,
क्यूंकि इसे चूमने चाटने का मुक़ाम हासिल है.
''जिसको अल्लाह तअला ने सात रात और आठ दिन मुतावातिर मुसल्लत कर दिया. वह तो उस क़ौम को इस तरह गिरा हुवा देखाता कि वह गोया गिरी हुई खजूरों के ताने हों."
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (7 )
किस को सात रात और आठ दिन मुतावातिर मुसल्लत कर दिया ?
किस पर मुसल्लत कर दिया?
अल्लाह के इशारे पर पहाड़ और समंदर उछलने लगते हैं,
फिर किस बात ने उसको मुतावातिर मुसल्लत करते रहने के अज़ाब में मुब्तिला रक्खा. मुहम्मद का ज़ेह्नी परवाज़ भी किस क़दर फूहड़ है.
अल्लाह को अरब में खजूर इन्जीर और जैतून के सिवा कुछ दिखाता ही नहीं.
''फ़िरऔन ने और इस से पहले लोगों ने और लूत की उलटी हुई बस्तियों ने बड़े बड़े कुसूर किए, सो उन्हों ने अपने रसूल का कहना न माना तो अल्लाह ने इन्हें बहुत सख़्त पकड़ा. हमने जब कि पानी को तुग़यानी हुई, तुमको कश्ती में सवार किया ताकि तुम्हारे लिए हम इस मुआमले को यादग़ार बनाएँ और याद रखने वाले कान इसे याद रक्खें."
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (10-14)
पाषाण युग के लूत कालीन बाशिदों का ज़िक्र है कि उस गड़रिए लूत की बातें मुहम्मद कर रहे है जो बूढा बेय़ार ओ मदद गार अपनी दो बेटियों को लेकर एक पहाड़ पर रहने लगा था.
मुहम्मद अपने लिए पेश बंदी कर रहे हैं कि मुझ रसूल की बातें न मानोगे तो अल्लाह तुम्हारी बस्तियों को ज़लज़ले और सूनामी के हवाले कर देगा.
"फिर सूर में यकबारगी फूँक मार दी जाएगी और ज़मीन और पहाड़ उठा लिए जाएँगे फिर दोनों एक ही बार में रेज़ा रेज़ा कर दिए जाएँगे, तो इस रोंज़ होने वाली चीज़ हो पड़ेगी."
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (15)
जब ज़मीन और पहाड़ उठा लिए जाएँगे तो हज़रत के गुनाहगार दोज़ख़ी कहाँ होंगे?
"आसमान फट जाएगा और वह उस दिन एकदम बोदा होगा और फ़रिश्ते उसके किनारे पर आ जाएगे और आपके परवर दिगार के अर्श को उस रोंज़ फ़रिश्ते उठाए होगे."
ऐसे फटीचर अल्लाह से अल्लाह बचाए.
मुसलमानों!
अपने अल्लाह का ज़ेहनी मेयार देखो, उसकी अक़्ल पर मातम करो,
आसमान फट जाएगा, इस मुतनाही कायनात को काग़ज़ का टुकड़ा समझने वाला तुम्हारा नबी कहता है कि फिर ये बोदा (भद्दा) हो जायगा ? फटे हुए आसमान को फ़रिश्ते अपने कन्धों पर ढोते रहेंगे ?
क्या इसी आसमान फाड़ने वाले अल्लाह से तुम्हारी फटती है ? ?
"उस शख़्स को पकड़ लो और इसके तौक़ पहना दो, फिर दोज़ख में इसको दाख़िल कर दो फिर एक ज़ंजीर में जिसकी पैमाइश सत्तर गज़ हो इसको जकड दो. ये शख़्स अल्लाह बुज़ुर्ग पर ईमान नहीं रखाता था."
(30-33)
(30-33)
कोई खुद्दार और ख़ुद सर था मुहम्मद के मुसाहिबों में, जोकि उनकी इन बातों से मुँह फेरता था, उसका बाल बीका तो कर नहीं सकते थे मगर उसको अपने क़यामती डायलाग से इस तरह से ज़लील करते हैं.
"मैं क़सम खाता हूँ उन चीजों की जिन को तुम देखते हो और उन चीजों की जिन को तुम नहीं देखते कि ये क़ुरआन कलाम है एक मुअज्ज़िज़ फ़रिश्ते का लाया हुवा और ये किसी शायर का कलाम नहीं."
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (38 -41)
कौन सी चीज़ें है जो अल्लाह को भी नहीं दिखाई देतीं? क्या वह भी अपने मुसलमान बन्दों की तरह ही अँधा है. फिर क़समें खा खाकर अपनी ज़ात को क्यूं गुड गोबर किए हुए है.
मुसलमानों!
तुम्हें इन अफ़ेमी आयतों से मैं नजात दिला रहा हूँ.
मेरी राय है कि तुम एक ईमान दार ज़िन्दगी जीने के लिए इस 'मोमिन' की बात मानों और अपनी ज़ात को सुबुक दोश करो.
इन क़ुरआनी बोझ से और इन ग़लाज़त भरी आयातों से.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
No comments:
Post a Comment