खेद है कि यह वेद है (74)
हे व्याधि!
तू शत्रुओं की सेनाओं को कष्ट देने वाली और उनके चित्त को मोह लेने वाली है. तू उनके शरीरों को साथ लेती हुई हमसे अन्यत्र चली जा.
तू सब और से शत्रुओं के हृदयों को शोक-संतप्त कर.
हमारे शत्रु प्रगाढ़ अन्धकार में फंसे |४४|
*घोर अधर्मी हैं यह धर्म ग्रंथ.
हे अग्नि !
तुम शत्रु-सैन्य हराओ.
शत्रुओं को चीर डालो तुम किसी द्वारा रोके नहीं जा सकते.
तुम शत्रुओं का तिरस्कार कर इस अनुष्ठान करने वाले यजमान को तेज प्रदान करो |३७| यजुर्वेद १.९)
* वेदों और क़ुरान में चीर फाड़ करने वाली अमानवीय घोषणाएं ही मिलेगी.
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