खेद है कि यह वेद है (78)
अश्वस्या............................तनुवशिन || (अथर्व वेद ४-४-८) अर्थ: हे देवताओं, इस आदमी के लिंग में घोड़े, घोड़े के युवा बच्चे, बकरे, बैल और मेढ़े के लिंग के सामान शक्ति दो
अद्द्यागने............................पसा:||
(अथर्व वेद ४-४-६)
अर्थ:
हे अग्नि देव, हे सविता, हे सरस्वती देवी,
तुम इस आदमी के लिंग को इस तरह तान दो जैसे धनुष की डोरी तनी रहती है
* और छप्पर तान दो इन तने हुए लिंगों पर , ऐसे कि जनता को कुछ नज़र न आए.
अश्वस्या............................तनुवशिन || (अथर्व वेद ४-४-८) अर्थ: हे देवताओं, इस आदमी के लिंग में घोड़े, घोड़े के युवा बच्चे, बकरे, बैल और मेढ़े के लिंग के सामान शक्ति दो
अद्द्यागने............................पसा:||
(अथर्व वेद ४-४-६)
अर्थ:
हे अग्नि देव, हे सविता, हे सरस्वती देवी,
तुम इस आदमी के लिंग को इस तरह तान दो जैसे धनुष की डोरी तनी रहती है
* और छप्पर तान दो इन तने हुए लिंगों पर , ऐसे कि जनता को कुछ नज़र न आए.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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