बकरीद(बक्र+ईद)
बक्र के माने गाय के होते हैं जिसको आम तौर पर बकरा समझा जाता है.
जानवरों का क़त्ल आम बकरीद है.
धार्मिक अंध विश्वास के तहत आज क़ुरबानी का दिन है.
अल्लाह को प्यारी है, क़ुरबानी.
अब अगर अल्लाह ही किसी अनैतिक बात को पसंद करता हो,
तो बन्दे भला कैसे उसको राज़ी करने का भर पूर मुज़ाहिरा न करेंगे,
भले ही यह हिमाक़त का काम क्यूं न हो.
वैसे अल्लाह को क़ुरबानी अगर प्यारी है तो मुसलमान अपनी औलादों की क़ुरबानी किया करे. जानवरों की क़ुरबानी कोई बलिदान है क्या?
मुसल्मान अपनी औलादों को सूली पर चढ़ाएँ,
अगर अल्लाह ख़ुश होगा तो बेटा मेंढा में तब्दील हो जाएगा.
क़ुरबानी की कहानी ये है कि - - -
बाबा इब्राहीम की कोई औलाद न थी.
उनकी पत्नी जवानी पार करने के हद पर आई तो उसने अपने शौहर को राय दिया कि वह मिसरी लोंडी हाजरा को उप पत्नी बना ले ताकि वह उसकी औलाद से अपना वारिस पा सके. इब्राहीम राज़ी हो गया.
उसके बाद हाजिरा हामला हुई और इस्माईल पैदा हुवा ,
मगर हुवा यूं कि थोड़े अरसे बाद सारा ख़ुद हामिला हुई और उससे इशाक पैदा हुवा.
इसके बाद सारा, हाजिरा और उसके बेटे से जलने लगी.
सारा ने हाजिरा से ऐसी दुश्मनी बाँधी कि पहली बार हामला हाजिरा को घर से बाहर कर दिया. वह लावारिस दर बदर मारी मारी फिरी और आख़िर सारा से बिनती की माफ़ी मांगी तब घर दाख़िल हुई.
जब इस्माईल पैदा हुवा तो सारा और भी कुढ़ ने लगी,
फ़िर जब ख़ुद इशाक की माँ बनी तो एक दिन अपने शौहर को इस बात पर अमादा कर लिया कि वह हाजिरा के बेटे को अल्लाह के नाम पर क़त्ल कर दे.
इब्राहीम इसके लिए राज़ी तो हो गया मगर उसके दिल में कुछ और ही था.
वह अलने बेटे इस्माईल को लेकर घर से दूर एक पहाड़ी पर ले गया,
रास्ते में एक दुम्बा भी ख़रीद लिया और इस्माईल की क़ुरबानी का ख़ाका तैयार किया. कि "इस्माईल की जगह अल्लाह ने दुम्बा ला खड़ा किया"
जिसमे वह कामयाब रहा.
जो आज क़ुरबानी के रस्म की सुन्नत बन गई है.
इस नाटक से दोनों बीवियों को इब्राहीम ने साध लिया.
जब इब्राहीम ने अपने बेटे की क़ुरबानी दी तो अकेले वह थे और उनका अल्लाह,
बेटा मासूम था गोदों में खेलने की उसकी उम्र थी. यानी कोई गवाह नहीं था,
सिर्फ़ अल्लाह के जो अभी तक अपने वजूद को साबित करने में नाकाम है,
जैसे कि तौरेत, इंजील और क़ुरआन के मानिंद उसे होना चाहिए.
दीगर कौमें वक़्त के साथ साथ इस क़ुरबानी के वाक़िए को भूल गईं जो इब्राहीम ने अपने दो बीवियों के झगड़े का एक हल निकाला ,
मगर मुसलमानो ने इसको उनसे उधार लेकर इस फ़ितूर पर क़ायम हैं.
हिदुस्तान मे भी ये पशु बलि और नर बलि की कुप्रथा थी,
मगर अब ये प्रथा जुर्म बन गई है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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