खेद है कि यह वेद है
स्थिर बृक्ष आदि को चंचल करने वाले,
अपनी शक्ति से सब को पराजित करने वाले,
पशु के सामान भयानक,
अपने बल द्वारा समस्त संसार को व्याप्त करने वाले,
अग्नि के सामान द्वीव जल से मुक्त मरुद गण,
घूमने वाले बादलों को छिन भिन्न करके जल बरसते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 34(1)
यह देखौ पंडित के ज्ञान. अपने पूज्य को पशु बतलाता है, पशुओं को भयानक जनता है. अपने देव की विचित्र विशेषताएँ गिनवाता है. कहते हैं कि वेद मन्त्रों की व्याख्या ब्राह्मण के आलावा कोई दूसरा नहीं कर सकता, ज़ाहिर है इसका पांडित्व नंगा हो जाएगा. विडंबना ही कही जाएगी कि ऐसी पाखंड पोथी भारत के सर आँख पर है.
*(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन
नई दिल्ली)
32
खेद है कि यह वेद है (32)
हे अभीष्ट वर्षक मरूद गण !
तुम्हारी जो औषधियां शुद्ध एवं अत्यधिक सुख देने वाली हैं,
जिन्हें हमारे पिता मनु ने पसंद किया था,
रूद्र की उन्हीं सुखदायक व् भय नाशक औषधियों की हम इच्छा करते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 33(13)
इस वेद मन्त्र को इस लिए चुना कि इससे मालूम हुवा कि इन मन्त्रों के रचैता रुस्वाए-ज़माना मनु महाराज वंशज हैं, मनु महाराज ने मनु समृति रच कर देश को मनु विधान दिया था, जिस में मानवता 5000 सालों से कराह रही है.
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