खेद है कि यह वेद है (41)
*हे वायु ! तुम्हारे पास जो हजारों रथ हैं,
उनके द्वारा नियुत गणों के साथ सोमरस पीने के लिए आओ.
*हे वायु नियुतों सहित आओ.
यह दीप्तमान सोम तुम्हारे लिए है.
तुम सोमरस निचोड़ने यजमान के घर जाते हो.
* हे नेता इंद्र और वायु आज नियुतों के साथ गव्य (पंचामृति) मिले सोम पीने के लिए आओ.
द्वतीय मंडल सूक्त 41 (1) (2) (3)
* हजारो रथ पर सवार अकेले इंद्र देव कैसे आ सकते हैं ? वह भी एक जाम पीने के लिए ?? पुजारी देव को परम्परा याद दिलाता है कि
"तुम सोमरस निचोड़ने यजमान के घर जाते हो."
हमारा मक़सद किसी धार्मिक आस्था वान को ठेस पहुचना नहीं है.
उनको जगाना है कि इन मिथ्य परम्पराओं को समझें और जागें.
यह रूकावट बनी हुई हैं इंसान के लिए कि वह वक़्त के साथ क़दम मिला कर चले.
***
हे सोम एवं पूषा !
तुम में से एक ने समस्त प्राणियों को उत्पन्न क्या है.
दूसरा सब का निरीक्षण करता हुवा जाता है.
तुम हमारे यज्ञ कर्म की रक्षा करो.
तुम्हारी सहायता से हम शत्रुओं की पूरी सेना को जीत लेंगे.
द्वतीय मंडल सूक्त 40(5)
*पंडित जी सैकड़ों देव गढ़ते है और फिर इनको उनकी विशेषता से अवगत कराते हैं, उसके बाद उनको अपनी चाकरी पर नियुक्त करते हैं. पता नहीं किस शत्रु की सेना इनके यज्ञ में विघ्न डालती हैं.
यजमान हाथ जोड़ कर इनके मंतर सुनते हैं. मैंने पहले भी कहा है मंतर जिसे मंत्री के सिवाए कोई समझ न पाए. यह बहुधा संस्कृति और अरबी में होते है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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