खेद है कि यह वेद है (43)
मेघावी स्तोता सन्मार्ग मार्ग प्राप्त क्कारने के लिए परम बल शाली,
वैश्यानर अग्नि के प्रति यज्ञों में सुन्दर स्तोत्र पढ़ते है.
मरण रहित अग्नि हव्य के द्वारा देवों की सेवा करते हैं.
इसी कारण कोई भी सनातन धर्म रूपी यज्ञों को दूषित नहीं करता.
तृतीय मंडल सूक्त 3 (2)
सुन्दर स्तोत्र वेद में किसी जगह नज़र नहीं आते.
हाँ ! छल कपट से ज़रूर पूरा ऋग वेद पटा हुवा है.
अग्नि हव्य को किस तरह लेकर जाती है कि देवों को खिला सके.
कहाँ बसते हैं ये देव गण ?
यही लुटेरे बाह्मन हिन्दुओं के देव बने बैठे हैं.
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अग्नि ने उत्पन्न होते ही धरती और आकाश को प्रकाशित किया
एवं अपने माता पिता के प्रशंशनीय पुत्र बने.
हव्य वहन करने वाले, यजमान को अन्न देने वाले,
अघृष्य एवं प्रभायुक्त अग्नि इस प्रकार पूज्य हैं,
जैसे मनुष्य अतिथि की पूजा करते हैं.
तृतीय मंडल सूक्त 2 (2)
अन्धविश्वाशी हिन्दू हर उस वस्तु को पूजता है, जिससे वह डरता है,
या फिर जिससे उसकी लालच जुडी हुई होती है.
पहले सबसे ज्यादा खतरनाक वस्तु आग हुवा करती थी,
इस से सबसे ज्यादा डर हुवा करता था लिहाज़ा उन्हों ने इसे बड़ा देव मान लिया और इसके माता पिता भी पैदा कर दिया.
पुजारी यजमान को जताता है कि अग्नि उसके लिए हव्य और अन्न मुहया करती है, इस लिए इसकी सेवा अथिति की तरह किया जाए.
अग्नि तो हवन कुंड में होती है, सेवा पंडित जी अपनी करा रहे है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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