Wednesday, 27 March 2019

सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन - 83 = سورتہ المطفففین (वैलुल्लिल मुतफ्फेफीन)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन - 83 = سورتہ المطفففین
(वैलुल्लिल मुतफ्फेफीन) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

"बड़ी ख़राबी है नाप तौल में कमी करने वालों की,
कि जब लें तो पूरा लें,
और जब दें तो घटा कर दें.
क्या उनको यक़ीन नहीं है कि वह बड़े सख़्त दिन में जिंदा करके उठाए जाएँगे,
जिस दिन तमाम आदमी अपने रब्बुल आलमीन के सामने खड़े होंगे,
हरगिज़ नहीं होगा लोगों का नामाए आमाल सजजैन में होगा,
आपको कुछ ख़बर है कि सजजैन में रक्खा हुवा ? 
नामाए आमाल क्या चीज़ है?
वह एक निशान किया हुवा दफ़्तर है
इस रोज़ झुटलाने वालों की बड़ी ख़राबी होगी.
और इसको तो वही झुटलाता है जो हद से गुज़रने वाला हो 
और मुजरिम हो और इसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाएँ 
तो यूं कह दे बे सनद बातें है, 
अगलों से अन्क़ूल चली आ रही हैं,
हरगिज़ नहीं बल्कि उनके आमाल का ज़ंग उन दिलों पर बैठ गया है.
हरगिज़ नहीं बल्कि इस रोज़ ये अपने रब से रोक दिए जाएंगे,
फिर ये दोज़ख में डाले जाएँगे और कहा जाएगा 
यही है वह जिसे तुम झुटलाते थे.
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन  83  आयत (1 -1 7)

हरगिज़ नहीं नेक लोगों का आमाल इल्लीईन में होगा,
और आपको कुछ ख़बर है कि ये इल्लीईन में रखा हुवा आमाल नामा क्या होगा, वह एक निशान लगा दफ़्तर है जिसे मुक़रिब फ़रिश्ते देखते है,
नेक लोग बड़ी सताइश में होंगे,
मसेह्रियों पर बैठे बहिश्त के अजायब देखते होंगे,
ऐ मुख़ातिब तू इनके चेहरों में आसाइश की बशारत देखेगा,
और पीने वालों के लिए शराब ख़ालिस सर बमुहर होगी,
और हिरस करने वालों को ऐसी चीज़ से हिरस करना चाहिए,
काफ़िर दुन्या में मुसलमानों पर हँसते थे, अब मुसलमान इन पर हँस रहे होंगे, मसह्रियों पर होंगे, वाक़ई काफ़िरों को उनके किए का ख़ूब बदला मिला."
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन  83  आयत 

नमाज़ियो !
मुहम्मद की वज़अ करदा मन्दर्जा बाला इबारत बार बार ज़बान ए उर्दू में दोहराओ, 
फिर फ़ैसला करो कि क्या ये इबारत काबिले इबादत है? 
इसे सुन कर लोगों को उस वक़्त हंसी आना तो फ़ितरी बात हुवा करती थी, 
जिसकी गवाही ख़ुद सूरह दे रही है, 
आज भी ये बातें क्या तुम्हें मज़हक़ा ख़ेज़ नहीं लगतीं ? 
बड़े शर्म की बात है इसे आप अल्लाह का कलाम समझते हो  
और उस दीवाने की बड़ बड़ की तिलावत करते हो. 
इससे मुँह मोड़ो ताकि क़ौम को इस जेहालत से नजात की कोई सूरत नज़र आए. दुन्या की 2 0 % नादानों को हम और तुम मिलकर जगा सकते हैं. 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment