मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह तकवीर- 81 = سورتہ التکویر
(इज़ा अशशम्सो कूवरत)
यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं.
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.
देखो, बाज़मीर होकर कि तुम अपने नमाज़ों में क्या पढ़ते हो - - -
"जब आफ़ताब बेनूर हो जाएगा,
जब सितारे टूट कर गिर पड़ेगे,
जब पहाड़ चलाए जाएँगे,
जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी,
जब वहशी जानवर सब जमा हो जाएगे,
जब दरिया भड़काए जाएंगे,
और जब एक क़िस्म के लोग इकठ्ठा होंगे,
और जब ज़िन्दा गड़ी हुई लड़की से पूछा जाएगा
कि वह किस गुनाह पर क़त्ल हुई,
और जब नामे आमाल खोले जाएँगे,
और जब आसमान फट जाएँगे,
और जब दोज़ख दहकाई जाएगी,
तो मैं क़सम खाता हूँ इन सितारों की
जो पीछे को हटने लगते हैं,
और क़सम है उस रात की जब वह ढलने लगे,
और क़सम है उस सुब्ह की जब वह जाने लगे,
कि कलाम एक फ़रिश्ते का लाया हुवा है.
जो क़ूवत वाला है
और जो मालिक ए अर्श के नज़दीक़ ज़ी रुतबा है,
वहाँ इसका कहना माना जाता है,
सूरह तक्वीर 81 आयत (1 -2 0 )
अपने कलाम में नुदरत बयानी समझने वाले मुहम्मद क्या क्या बक रहे हैं
कि जब पहाड़ों में चलने के लिए अल्लाह पैर पैदा कर देगा,
वह फुद्केंगे, लोग अचम्भा और तमाशा ही देखेंगे,
मुहम्मद ऊंटों और खजूरों वाले रेगिस्तानी थे,
गोया इसे भी अलामाते क़यामत तसुव्वर करते हैं कि
"जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी"
छुट्टा घूमे या रस्सियों में गाभिन हो अभागिन,
ऊंटनी ही नहीं तमाम जानवर हमेशा आज़ाद ही घूमा फिरा करेंगे.
दरिया सालाना भड़कते ही रहते हैं. ये क़ुरआन की फूहड़ आयतें
जिनकी क़समें अल्लाह अपनी तख़लीक़ की नव अय्यत को पेशे नज़र
रख कर क़सम खाता है तो इसपर यक़ीन तो नहीं होता,
हाँ, हँसी ज़रूर आती है.
मुसलामानों! क्या सुब्ह ओ शाम तुम ऐसी दीवानगी की इबादत करते हो?
"और वह तुम्हारे साथ रहने वाले मजनू नहीं हैं.
उन्हों ने फ़रिश्ते को आसमान पर भी देखा है
और ये पैग़म्बर की बतलाई हुई वह्यी क़ी बातों में बुख़्ल करने वाले नहीं.
और ये क़ुरआन शैतान मरदूद की कही हुई बातें नहीं हैं,
तो तुम लोग किधर जा रहे हो,
बस कि ये दुन्या जहान के लिए एक बड़ा नसीहत नामा है
और ऐसे लोगों के लिए जो तुम में सीधा चलना चाहे,
और तुम अल्लाह रब्बुल आलमीन के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते.
सूरह तक्वीर 81 आयत (2 1 -2 9 )
कहाँ उसका कहना नहीं माना जाता?
उसके हुक्म के बग़ैर तो पत्ता भी नहीं हिलता.
ये वही फ़रिश्ता है जिसे वह रोज़ ही देखते हैं
जब वह अल्लाह की वहयी लेकर मुहम्मद के पास आता है,
फिर उसकी एक झलक आसमान पर देखने की गवाही कैसी?
क़यामत के बाद जब ये दुन्या ही न बचेगी तो नसीहत का हासिल?
क़ुरआन पर हज़ारों एतराज़ ज़मीनी बाशिदों के है,
जिसे ये ओलिमा मरदूद उभरने ही नहीं देते.
भोले भाले ऐ नमाज़ियो!
सबसे पहले ग़ौर करने की बात ये है कि ऊपर जो कुछ कहा गया है,
वह किसी इंसान के मुंह से अदा किया गया है या कि किसी ग़ैबी अल्लाह के मुंह से?
ज़ाहिर है कि ये इंसान के मुंह से निकला हुवा कलाम है
जो कि बद कलामी की हदों में जाता है.
क्या कोई ख़ुदाई हस्ती इरशाद कर सकती है कि
"जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी,"
अरबी लोग क़समें ज़्यादः खाते हैं. शायद क़समें इनकी ही ईजाद हों.
मुहम्मद अपनी हदीसों में भी क़ुरआन की तरह ही क़समे खाते हैं.
इस्लाम में झूटी क़समें खाना आम बात है, इनको अल्लाह मुआफ़ करता रहता है. अगर इरादतन क़सम खा लिया तो किसी यतीम या मोहताज को खाना खिला दो. बस. झूटी क़सम से मुबर्रा हुए.
ग़ौर करने की बात है कि जहाँ झूटी क़समें रायज हों
वहां झूट बोलना किस क़दर आसन होगा?
ये क़ुरआन झूट ही तो है. क़यामत, दोज़ख, जन्नत, हिसाब-किताब, फ़रिश्ते, जिन और शैतान सब झूट ही तो हैं.
क्या तुम्हारे आईना ए हयात पर झूट की परतें नहीं जम गई हैं?
ये इस्लाम एक गर्द है तुमको मैला कर रही है.
अपने गर्दन को एक जुंबिश दो,
इस जमी हुई गर्द को अपनी हस्ती पर से हटाने के लिए.
अल्लाह कहता है
"और तुम अल्लाह रब्बुल आलमीन के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते."
तो फिर दुन्या में कहाँ कोई बन्दा गुनाहगार हो सकता है,
सिवाए अल्लाह के.
सिवाए अल्लाह के.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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