रामायण कथा
बिना आज्ञा कक्ष में प्रवेश पर राम ने भाई लक्षमन को मृत्यु दंड दिया,
चौदह साल राज भोग करने वाले कैकेई पुत्र, भाई भरत के बेटों को मर्यादा पुरुष राम देश निकाला का आदेश दिया,
अर्धांगिनी सती सीता की एक साधारण धोबी की फ़ब्ती कसने पर अग्नि परीक्षा लिया, (सीता धरती में समां गई ? या अपने दोनों पुत्रों के लेकर आश्रम चली गई ?)
यह धर्म का चिर परिचित विवाद है.
मर्यादा पुरुष की ऐसी बहुत सी बातें हैं जो अमर्यादित हैं.
अंत में पश्याताप की आग ने राम को आत्म ह्त्या के लिए बाध्य कर दिया
और वह सरयू धारा में समां गए.
ऐसी है वाल्मीकि रामायण की राम कथा.
इसे पढ़ कर तुलसी दास खिन्न हुए और अतीत में डूबकी लगा कर राम युग में जाकर जन्म लिया. राम के जन्म से लेकर मृयु तक वहीँ वास किया
और शोध लेकर अपनी वर्तमान अवस्था में लौटे.
(तुलसी रामायण के संदर्भ लेख में पोंगा पंडित का विवरण देखें)
जिसे पढ़ कर पंडित विद्वानों ने कहा
"साला वाल्मीकि ब्रह्मण नही भंगी था."
इसे देख कर वाल्मीकि की आत्मा भले ही आहत हुई हो मगर समाज के अति घिरणित भंगियों को मुफ़्त ही एक सम्मानित पैग़मबर मिल गया.
नोट ; - ग्यारवीं शताब्दी में एक परित्यगीय सीता नाम की महिला संस्कृति विद्वान वाल्मीकि के आश्रम में शरण में थी, उसी सीता पर वाल्मीकि ने रामायण नाम की गाथा लिखी थी जिसे तत्कालीन राजा ने बहुत सराहा था. बाद में यह कथा ने जनता की पसंद बन कर खूब प्रसिद्धि पाई.
यह वाल्मीकि रामायण सीता प्रधान है
और तुलसी रामायण राम प्रधान है.
उसके बाद रामायण एक लेखन विधा बन गई
और अनेक भषाओं में दर्जनों रामायण लिखी गईं.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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