अल्लाह की अह्द शिकनी
अल्लाह अह्द शिकनी करते हुए कहता है - - -
''अल्लाह की तरफ़ से और उसके रसूल की तरफ़ से उन मुशरिकीन के अह्द से दस्त बरदारी है, जिन से तुमने अह्द कर रखा था.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ पारा आयत (१)(२)
मुसलामानों !
आखें फाड़ कर देखो यह कोई बन्दा नहीं, तुम्हारा अल्लाह है जो अहद शिकनी कर रहा है, वादा ख़िलाफ़ी कर रहा है, मुआहिदे की धज्जियाँ उड़ा रहा है, मौक़ा परस्ती पर आमदः है, वह भी इन्सान के हक़ में अम्न के ख़िलाफ़ ?
कैसा है तुम्हारा अल्लाह, कैसा है तुम्हारा रसूल ? एक मर्द बच्चे से भी कमज़ोर जो ज़बान देकर फिरता नहीं. मौक़ा देख कर मुकर रहा है?
लअनत भेजो ऐसे अल्लाह पर.
''सो तुम लोग इस ज़मीन पर चार माह तक चल फिर लो और जान लो कि तुम अल्लाह तअला को आजिज़ नहीं कर सकते और यह कि अल्लाह तअला काफ़िरों को रुसवा करेंगे.''
कहते है क़ुरआन अल्लाह का कलाम है,
क्या इस क़िस्म की बातें कोई ख़ालिक़ ए कार-ए-कायनात कर सकता है?
मुसलमान क्या वाक़ई अंधे,बहरे और गूँगे हो चुके हैं, वह भी इक्कीसवीं सदी में.
क्या ख़ुदाए बरतर एक साज़िशी, पैग़म्बरी का ढोंग रचाने वाले अनपढ़, नाक़बत अंदेश का मुशीर-ए-कार बन गया है. ?
वह अपने बन्दों अपनी ज़मीन पर चलने फिरने की चार महीने की मोहलत दे रहा है ?
क्या अज़मतों और जलाल वाला अल्लाह आजिज़ होने की बात भी कर सकता है?
क्या वह बेबस, अबला महिला है जो अपने नालायक़ बच्चों से आजिज़-ओ-बेज़ार भी हो जाती है. वह कोई और नहीं बे ईमान मुहम्मद स्वयंभू रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हैं जो अल्लाह बने हुए अह्द शिकनी कर रहे है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
No comments:
Post a Comment