सूरतें क्या ख़ाक में होंगी ?
मुहम्मद ने क़ुरआन में क़ुदरत की बख़्शी हुई नेमतों का जिस बेढंगे पन से बयान किया है, उसका मज़ाक़ ही बनता है न कि कोई असर ज़हनों पर ग़ालिब होता हो.
बे शुमार बार कहा होगा ''मफ़िस समावते वमा फ़िल अरज़े''
यानी आसमानों को (अनेक कहा है और ज़मीन को केवल एक कहा है).
जिसका परियाय ये कि आसमान अनेक और ज़मीन एक,
जब कि आसमान, कायनात न ख़त्म होने वाला एक है और उसमें ज़मीने, बे शुमार हैं अरबो खरबों.
वह बतलाते हैं.
पहाड़ों को ज़मीन पर इस लिए ठोंक दिया कि तुम को लेकर ज़मीन डगमगा न सके. परिंदों के पेट से निकले हुए अंडे को बेजान बतलाते है और अल्लाह की शान कि उस बेजान से जान दार परिन्द निकल देता है.
ज़मीन पर रस्ते और नहरें भी अल्लाह की तामीर बतलाते हैं.
कश्ती और लिबासों को भी अल्लाह की दस्त कारी गर्दानते है.
मुल्लाजी कहते हैं अल्लाह अगर अक्ल ही देता तो दस्तकारी कहाँ से आती?
मुहम्मद के अन्दर पयंबरी फ़िक्र तो छू तक नहीं गई थी कि
जिसे हिकमत, मन्तिक़ या साइंस कहा जाए.
ज़मीन कब वजूद में आई? कैसे इरतेक़ाई सूरतें इसको आज की शक्ल में लाईं,
इन को इससे कोई लेना देना नहीं,
बस अल्लाह ने इतना कहा'' कुन'', यानी होजा और ''फयाकून'' हो गई.
जब तक मुसलमान इस क़बीलाई आसन पसंदी को ढोता रहेगा,
वक़्त इसको पीछे करता जाएगा.
जब तक मुसलमान मुसलमान रहेगा उसे यह क़बीलाई आसन पसंदी ढोना ही पड़ेगा, जो कुरआन उसको बतलाता है.
मुसलमानों के लिए ज़रूरी हो गया है कि वह इसे अपने सर से उठा कर दूर फेंके और खुल कर मैदान में आए.
ब्रिज नारायण चकबस्त ने दो लाइनों में पूरी मेडिकल साइंस समो दिया है.
ज़िन्दगी क्या है? अनासिर में ज़हूरे तरतीब,
मौत क्या है? इन्ही अजज़ा का परीशां होना.
क़ुरआन की सारी हिकमत, हिमाक़त के कूड़े दान में डाल देने की ज़रुरत है.
अगर ग़ालिब का यह शेर मुहम्मद की फ़िक्र को मयस्सर होता तो शायद क़ुरानी हिमाक़त का वजूद ही न होता - - -
सब कहाँ कुछ लाला ओ गुल में नुमायाँ हो गईं,
सूरतें क्या ख़ाक में होंगी जो पिन्हाँ हो गईं''
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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