बेचारे मुसलमान
मुसलमान बड़े सब्र आज़मा दौर से गुज़र रहे हैं. उन के सच्चे रहनुमाओं को उपाधियाँ दे दी जाती हैं और उनको ऐसा बदनाम किया जाता है कि जैसे ज़हरीला सांप हो.
उसकी अकेली आवाज़ दस आवाजों के बीच दब कर रह जाती है.
मुस्लिम समाज की अच्छाईयाँ भी अकसरियत की ढिंढोरा बुरा बना देती है. अकसरियत की बुरायाँ तरक्क़ी पा रही हैं, उनको टोकने वाला कोई नहीं.
आज कल मुस्लिम औरतों के लिए अकसरियत सूखी जा रही है.
औरतों के मुआमले में अगर देखा जाए तो मुस्लिम समाज सुर्ख़रू हैं
और हिन्दू समाज ज़र्दरू.
मुस्लिम समाज में बेवाओं और तलाक़ शुदा को फ़ौरन अपना लिया जाता है.
शादी के लिए उसे तरजीह दी जाती है.
हिन्दू अपनी बेवा माँ बहन और बेटियों को पंडों के हरम (आश्रम) में जमा करा देता है. इस समाज में तलाक़ की नौबत ही नहीं आती,
बहू को स्वाहः कर दिया जाता है.
कंजूस समाज अबला को पालने को राज़ी नहीं होता.
मुस्लिम समाज में माँ के पैर के नीचे जन्नत होती है.
बेटियाँ अल्लाह की रहमत हैं.
शराब हिन्दू समाज का बड़ा मसअला है, लाखों औरतें और बच्चे इसका शिकार हैं. मुस्लिम समाज के लिए शराब कोई मसअला ही नहीं, शराब हराम जो ठहरी.
हज़ारो नंग धुडंग नागा मख़लूक़ हिन्दू ही होती है,
मुसलमानों में नंग्नता का तसव्वुर भी नहीं है.
यह चंद मिसालें हैं,
लिखने को बहुत कुछ है
मगर बात दूर तक चली जाएगी.
मुसलमान बुनयादी तौर पर उन कट्टर मनुवादियों का शिकार हैं जिनके चंगुल से यह निकल गए. उप महाद्वीप की लग भग 50% आबादी इनकी ग़ुलामी से मुक्त हो गई है और मुसलसल इनके हाथों से निकलती चली जा रही है.
भारत के मुसलमानों का जुर्म क्या है ?
वह अरब के लड़ाके क़बीलों का अंश नहीं, मूलतः भारतीय हैं.
मुस्लिम कलचर और मुस्लिम पद्धति के अंतर्गत हैं जो कि कोई जुर्म नहीं.
मगर इनको ख़ुद जागना होगा, यह इल्म जदीद को समझें,
मदरसे से निकलकर बाहर खड़े हो जाएं जिसे ख़ुद मनुवाद चला रहा है
कि मुसलमान इसमें मुब्तिला रहें. आगे न बढ़ जाएं.
मुसलमान "तअलीम ए नव" से जुड़ने के लिए आमादा हो जाएं.
मुल्ला और मोलवी से फ़ासला अख़्तियार करे.
तीन तलाक़ जैसी बुराई को खद हराम क़रार दें,
न कि फ़लाने ढिमाके आकर इनकी ख़बर लें.
बाक़ी मुआमले में मनुवादियों से कोसों आगे हैं.
मगर तअलीम में किसी से भी कोसों पीछे.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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