मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह जासिया-45 - سورتہ الجاسیہ
(क़िस्त 1)
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सूरह जासिया-45 - سورتہ الجاسیہ
(क़िस्त 1)
एक ही राग को मुहम्मद सूरह शुरू होने से पहले हर बार गाते हैं - - -
"ये नाज़िल की हुई किताब है, अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाले की तरफ़ से."
सूरह जासिया - 45 आयत (2)
झूट को सौ बार बोलो मुहम्मद साहब! हज़ार बार बोलो, लाख बार बोलो,
झूट; झूट ही रहेगा. चाहे जितना ज़ोर लगा कर बोलो, बहर हाल झूट झूट ही रहेगा. तुम्हारे चेले ओलिमा चौदह सौ सालों से झूट को दोहरा रहे हैं फिर भी झूट को सच्चाई में तबदील नहीं कर पाए.
अल्लाह कहीं कोई बेहूदा आयत गढ़ता है?
यही नहीं अल्लाह क्या बोलता भी है ?
सवाल ये उठता है कि मुहम्मदी अल्लाह क्या हो भी सकता है?
यही नहीं अल्लाह क्या बोलता भी है ?
सवाल ये उठता है कि मुहम्मदी अल्लाह क्या हो भी सकता है?
जो दाँव पेंच की बातें करता है,
फिर भी इसके जाल में फँसे इंसान आज फड़फड़ा रहे हैं,
तुम्हारे बारे में ज़बान खोलने पर मौत तक दे दी जाती हैं,
बहुत मुनज्ज़म गिरोह बन गया है झूट का,
जो इंसानों को झूट को ओढ़ने और बिछाने पर मजबूर किए हुए है.
"आसमान में और ज़मीन और ज़मीन पर ईमान वालों के लिए बहुत से दलायल हैं और तुम्हारे और उन हैवानात के पैदा करने में जिनको ज़मीन पर फैला रखा है, दलायल हैं उन लोगों के लिए जो यक़ीन रखते हैं एक के बाद दीगरे रात और दिन के आने जाने में और उस रिज़्क के बारे में जिसको अल्लाह ने आसमान से उतरा "
सूरह जासिया - 45 आयत (3-5)
निज़ाम ए क़ुदरत पर सतही और बेवक़ूफ़ाना तजज़िया को रूहानियत की पुड़िया में भर कर मुहम्मद सीधे सादे लोगों को बेच रहे हैं.
"और ये अल्लाह की आयतें हैं जो सहीह सहीह तौर पर हम आपको पढ़ कर सुनाते हैं, तो फिर अल्लाह और इसकी आयातों के बाद और कौन सी बात पर ये लोग ईमान लावेंगे. बड़ी ख़राबी होगी हर ऐसे शख़्स के लिए जो झूठा और नाफ़रमान है."
सूरह जासिया - 45 आयत (6-7)
मुहम्मद की तर्ज़ ए गुफ़्तुगू ही झूट होने की गवाह है कि वह अपनी गढ़ी आयातों को "सहीह सहीह तौर पर" जताने की कोशिश करते हैं.
"जो अल्लाह की आयातों को सुनता है, जब इसके रूबरू पढ़ी जाती हैं, फिर भी वह तकब्बुर करता हुवा, इस तरह अड़ा रहता है, जैसे उसने उनको सुना ही न हो. सो ऐसे शख़्स को एक दर्द नाक अज़ाब की ख़बर सुना दीजिए. और जब वह हमारी आयातों में से किसी आयत की ख़बर पाता है तो इसकी हँसी उड़ाता है, ऐसे लोगों के लिए सख़्त ज़िल्लत का अज़ाब है."
सूरह जासिया - 45 आयत (8-9)
क़ुरआन की हक़ीक़त यही थी, यही है, आज भी है और यही हमेशा रहेगी.
आप किसी मुसलमान को क़ुरआनी आयतें अनजाने में ही सुनाइए कि फलाँ धर्म ये बात कहता है तो वह इसकी खिल्ली उडाएगा मगर जब उसको बतलइए कि ये बात क़ुरआन की है, तो वह अपमा मुँह पीट पीट कर तौबा तौबा करेगा..
मेरे मज़ामीन को बहुत से लोग कहते थे कि जाने कहाँ से आएँ बाएँ शाएँ का क़ुरआन पेश करता है ये मोमिन. जब मैं नोट लगाया - - -
मेरी तहरीर में - - -
तो सब की बोलती बंद हो गई.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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