शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (65)
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
> हे महाबाहु अर्जुन !
वेदान्त के अनुसार समस्त कर्मों की पूर्ति के लिए पांच करण हैं ---
अब तुम इसे मुझ से सुनो.
कर्म का स्थान (शरीर)
कर्ता
विभिन्न इन्द्रियाँ
अनेक प्रकार की चेष्टाएँ
तथा परमात्मा.
यह पांच कर्म के करण हैं.
>>मनुष्य अपने शरीर मन या वाणी से जो भी उचित या अनुचित कर्म करता है,
वह इन पांच कारणों के फल स्वरूप होता है.
>>>जो मिथ्या अहंकार से प्रेरित नहीं है,
वह इस संसार में मनुष्य को मारता हुवा भी नहीं मारता.
न ही वह अपने कर्मों से बंधा हुवा होता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 18- श्लोक - 13-14-15-17
*सृष्टि रचैता भगवान् कृष्ण का रूप लेकर एक मंद बुद्धि अर्जुन को सम्मान देता है, महा बाहुबली की उपाधि देता है,
उसको पहाड़े रटाता,
दो इक्कम दो, दो दूनी पांच, दो तिहाई सात - - -
अर्जुन सदैव ऊहा पोह में रथ-बंधक बन कर उसकी ऊँट पटांग सुनता है,
कभी कृष्ण से सवाल करने के बाद जवाब पर सवाल नहीं करता.
पोंगा पंडित इंसानी फ़ितरत को हमेशा तीन, पांच और दस आदि संख्यकी गगित में सीमित करता है.
अपनी अल्प बुद्धि से गीता ज्ञान प्रसारित करता है.
वह कहता है - - -
"वह इस संसार में मनुष्य को मारता हुवा भी नहीं मारता."
है न - - -दो इक्कम दो, दो दूनी पांच, दो तिहाई सात - - -
और क़ुरआन कहता है - - -
>देखिए कि अल्लाह कुछ बोलने के लिए बोलता है,
यही बोल मुसलमानों से नमाज़ों में बुलवाता है - - -
"जब ज़मीन अपनी सख्त जुंबिश से हिलाई जाएगी,
और ज़मीन अपने बोझ बहार निकल फेंकेगी,
और आदमी कहेगा, क्या हुवा?
उस रज अपनी सब ख़बरें बयान करने लगेंगे,
इस सबब से कि आप के रब का इसको हुक्म होगा उस रोज़ लोग मुख्तलिफ़ जमाअतें बना कर वापस होंगे ताकि अपने आमाल को देख लें.
सो जो ज़र्रा बराबर नेकी करेगा, वह इसको देख लेगा
और जो शख्स ज़र्रा बराबर बदी करेगा, वह इसे देख लेगा.
सूरह ज़िल्ज़ाल ९९ - पारा ३० आयत (१-८)
नमाज़ियो!
ज़मीन हर वक़्त हिलती ही नहीं बल्कि बहुत तेज़ रफ़्तार से अपने मदार (ध्रुव) पर घूमती है.
इतनी तेज़ कि जिसका तसव्वुर भी कुरानी अल्लाह नहीं कर सकता.
अपने मदार पर घूमते हुए अपने कुल यानी सूरज का चक्कर भी लगती है
अल्लाह को सिर्फ यही खबर है कि ज़मीन में मुर्दे ही दफ्न हैं जिन से वह बोझल है
तेल. गैस और दीगर मदनियात से वह बे खबर है.
क़यामत से पहले ही ज़मीन ने अपनी ख़बरें पेश कर दी है और पेश करती रहेगी मगर अल्लाह के आगे नहीं, साइंसदानों के सामने.
धर्म और मज़हब सच की ज़मीन और झूट के आसमान के दरमियाँ में मुअललक फार्मूले है.ये पायाए तकमील तक पहुँच नहीं सकते. नामुकम्मल सच और झूट के बुनियाद पर कायम मज़हब बिल आखिर गुमराहियाँ हैं. अर्ध सत्य वाले धर्म दर असल अधर्म है. इनकी शुरूआत होती है, ये फूलते फलते है, उरूज पाते है और ताक़त बन जाते है, फिर इसके बाद शुरू होता है इनका ज़वाल ये शेर से गीदड़ बन जाते है, फिर चूहे. ज़ालिम अपने अंजाम को पहुँच कर मजलूम बन जाता है. दुनया का आखीर मज़हब, मजहबे इंसानियत ही हो सकता है जिस पर तमाम कौमों को सर जड़ कर बैठने की ज़रुरत है.
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