खेद है कि यह वेद है (11)
हे अग्नि हम तुम्हारे दिए हुए अन्न अश्व से शोभन सामर्थ्य प्राप्त करके सर्व श्रेष्ट बन जाएगे.
इस से वह हमारा अनंत धन ब्रह्मण, क्षत्रिय वैश, शूद्रऔर निषाद -
पांच जातियों के ऊपर प्रकाशित होगा जो दूसरों को प्राप्त होना कठिन है.
द्वतीय मंडल सूक्त-2 (10)
इस वेद मन्त्र से ज्ञात होता है कि शूद्र वैदिक काल तक अछूत नहीं माने जाते थे.
ऐसा लगता है कि मनु विधान ने इनको अछूत बना दिया जो कि आज ताक हिन्दू समाज का कोढ़ बना हुवा है. मगर वेड मन्त्र शूद्रों के कान में पड़ने पर दंड का प्रावधन क्यों था ?
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हे अग्नि ! जो लोग बुद्धिमान स्तोताओं को उत्तम गौ और शक्ति शाली अन्न दान करते हैं, उन्हें तथा हमें उत्तम स्थान पर ले चलो. हम उत्तम वीरों से युक्त होकर यज्ञ में बहुत से मन्त्र बोलेंगे.
द्वतीय मंडल सूक्त 2-(13)
वेद कुछ भी नहीं पंडितों की ठग विद्या है. बाह्मण उत्तम गाय और तर नवाले की फरमाईस कर रहा है, इसी शर्त पर वह वीरता युक्त मन्त्र जपने की बातें करता है.
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हे इंद्र ! हमारे द्वारा दिए गए पुरोडाशादि हव्य और सोमरस से प्रसन्न होकर हमें गायों और घोड़ों के साथ साथ धन्य भी दो.
इस तरह तुम हमारी दरिद्रता को मिटा कर तुम शोभन मान बन जाओ.
इंद्र इस सोमरस के करण संतुष्ट होकर हमारी सहायता करेंगे तो हम दस्यु का नाश करके एवं शत्रुओं से छुटकारा पाकर इंद्र द्वारा दिए गए अन्न का उपयोग करेंगे.
सूक्त (53-4)
हे ब्राह्मण भिखारियो !
काश कि तुम इंद्र देवता से सहायता की जगह परिश्रमी बनने और मेहनत की रोटी खाने का वरदान मांगते, काश कि तुम इन दंद फंद की बाते न करके ईमान दारी की बातें करते तो आज हिन्दुस्तानी विश्व में प्रथम श्रेणी के इंसान होते. तुम्हारे इन ग्रंथों के कारण हम आज दुन्या की नज़रों में घटिया तरीन मानव समाज हैं.
यहाँ तक कि खुद से नज़र मिलाने के लायक भी नहीं बचे.
हे अग्नि ! तुम यजमानों के पालन करता हो.
वे तुन्हें अपने घर में प्रकाश मान एवं अनुकूल चेतना वाला पाकर सुशोभित करते हैं. हे उत्तम सेवा वाले ! एवं समस्त हव्यों के स्वामी अग्नि !
तुम हजारों, सैकड़ों और दस्यों प्रकार के फल लोगों को देते हो.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
चापलूसी में करके उदर पोषण करने वालो पुरोहितो !
तुम्हारा मानसिक स्तर क्या था ?
दस्यों, सैकड़ों और हजारों को उल्टा करके गिना रहे हो, पहले हजारों, फिर सैकड़ों उसके बाद दस्यों ?
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