खेद है कि यह वेद है (8)
दूध भरे स्तनों वाली रंभाती हुई गाय के समान बिजली गरजती है.
गाय जिस प्रकार बछड़े को चाटती है,
उसी प्रकार बिजली मरूद गणों की सेवा करती है.
इसी के फल स्वरूप मरूद गणों ने वर्षा की है.
ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 3---------- (8)
पोंगा पंडित की कल्पना देखिए,
रंभाती गाय बिजली की तरह गरजती है ?
कभी इन दोनों को देखा और सुना ?
तो मरूद गण वर्षा करते हैं.
तब तो कुत्तों के भौंकने से मरूद गणों की हवा खिसकती होगी.
*
हे अश्वनी कुमारो !
सागर तट पर स्थित तुमहारी नौका,
आकाश से भी विशाल है.
धरती पर गमन करने के लिए तुम्हारे पास रथ हैं,
तुम्हारे यज्ञ कर्म में सोमरस भी सम्लित रहता है.
ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 46 ......(8)
चुल्लू भर सागर में अनंत आकाश से बड़ी नौका ?
मूरखों की अवलादो! इक्कीसवीं सदी को ठग रहे हो.
कल्पित देवताओं के कल्पित कारनामों को,
पुरोहित देवताओं को याद दिला दिला कर अपने बेवक़ूफ़ यजमान को प्रभावित करता है. जैसे कि वह उनके हर कामों का चश्म दीद गवाह हो.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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