खेद है कि यह वेद है (13)
सुन्दर नयनों वाले, जरा रहित एवं शोभन गति वाले अग्नि, हव्य दाता ! यजमान के शत्रुओं को नष्ट करने के लिए बुलाए गए हैं .
द्वतीय मंडल सूक्त 8-2
हजारों वर्षों से यजमान का सम्मान देकर हिदू समाज को इन निर्मूल मन्त्रों से लूटा जा रहा है. बाम्हन हिदू समाज के जोक हैं.
*
शत्रु नाशक एवं स्वयं शोभित अग्नि की स्तुति में ऋग वेद के सभी मन्त्रों का प्रयोग किया जाता है. अग्नि समस्त शोभओं को धारण करते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 8-5
मुसलमानों को क़यामत की आग से डराया जाता है और हिदुओ को इसी अग्नि से लुभाया जाता है.
ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
No comments:
Post a Comment