मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हश्र-59 - سورتہ الحشر
(मुकम्मल)
मदीने से चार मील के फ़ासले पर यहूदियों का एक ख़ुश हाल क़बीला,
बनी नुज़ैर नाम का रहता था, जिसने मुहम्मद से समझौता कर रखा था कि मुसलमानों का मुक़ाबिला अगर काफ़िरों से हुवा तो वह मुसलमानों का साथ देंगे और दोनों आपस में दोस्त बन कर रहेंगे.
इसी सिलसिले में एक रोज़ यहूदियों ने मुहम्मद की, ख़ैर शुग़ाली के जज़्बे के तहत दावत की.
इसी सिलसिले में एक रोज़ यहूदियों ने मुहम्मद की, ख़ैर शुग़ाली के जज़्बे के तहत दावत की.
बस्ती की ख़ुशहाली देख कर मुहम्मद की आँखें ख़ैरा हो गईं.
उनके मन्तिक़ी ज़ेहन ने उसी वक़्त मंसूबा बंदी शुरू कर दी.
अचानक ही बग़ैर खाए पिए उलटे पैर मदीना वापस हो गए और मदीना पहुँच कर यहूदियों पर इल्ज़ाम लगा दिया कि काफ़िरों से मिल कर ये मूसाई मेरा काम तमाम करना चाहते थे.
वह एक पत्थर को छत के ऊपर से गिरा कर मुझे मार डालना चाहते थे.
इस बात का सुबूत तो उनके पास कुछ भी न था मगर सब से बड़ा सुबूत उनका हथियार अल्लाह की वह्यी थी कि ऐन वक़्त पर उन पर नाज़िल हुई.
इस इलज़ाम तराशी को आड़ बना कर मुहम्मद ने बनी नुज़ैर क़बीले पर अपने लुटेरों को लेकर यलग़ार कर दिया. मुहम्मद के लुटेरों ने वहाँ ऐसी तबाही मचाई कि जान कर कलेजा मुंह में आता है.
बस्ती के बाशिंदे इस अचानक हमले के लिए तैयार न थे, उन्हों ने बचाव के लिए अपने किले में पनाह ले लिया और यही पनाह गाह उनको तबाह गाह बन गई.
ख़ाली बस्ती को पाकर कल्लाश भूके नंगे मुहम्मदी लुटेरों ने बस्ती का तिनका तिनका चुन लिया. उसके बाद इनकी तैयार फसलें जला दीं,
यहाँ पर भी बअज न आए, उनकी बागों के पेड़ों को जड़ से काट डाला.
फिर उन्हों ने किला में बंद यहूदियों को बहार निकाला और उनके अपने हाथों से बस्ती में एक एक घर को आग के हवाले कराया.
तसव्वुर कर सकते हैं कि उन लोगो पर उस वक़्त क्या बीती होगी.
इसकी मज़म्मत ख़ुद मुसलमान के संजीदा अफ़राद ने की, तो वही वहियों का हथियार मुहम्मद ने इस्तेमाल किया. कि मुझे अल्लाह का हुक्म हुवा था.
यहूदी यूँ ही मुस्लिम कश नहीं बने,
इनके साथ मुहम्मदी जेहादियों ने बड़े मज़ालिम किए है.
"वह ही है जिसने कुफ़्फ़ार अहले-किताब को उनके घरों से पहली बार इकठ्ठा करके निकाला. तुम्हारा गुमान भी न था कि वह अपने घरों से निकलेंगे और उन्हों ने ये गुमान कर रखा था कि इनके क़िले इनको अल्लाह से बचा लेंगे. सो इन पर अल्लाह ऐसी जगह से पहुँचा कि इनको गुमान भी न था, इनके दिलों में रोब डाल दिया था कि अपने घरों को ख़ुद अपने हाथों से उजाड़ रहे थे,
सो ए दानिश मंदों! इबरत हासिल करो"
सूरह हश्र 59 आयत (2)
"इन हाजत मंद मुहाजिरीन का हक़ है जो अपने घरों और अपने मालों से जुदा कर दिए गए. वह अल्लाह तअला के फज़ल और रज़ा मंदी के तालिब हैं और वह अल्लाह और उसके रसूल की मदद करते हैं.और यही लोग सच्चे हैं और इन लोगों का दारुस्सलाम में इन के क़ब्ल से क़रार पकडे हुए हैं. जो इनके पास हिजरत करके आता है, उससे ये लोग मुहब्बत करते हैं और मुहाजरीन को जो कुछ मिलता है, इससे ये अपने दिलों में कोई रश्क नहीं कर पाते और अपने से मुक़द्दम रखते हैं. अगरचे इन पर फ़ाकः ही हो.और जो शख़्स अपनी तबीयत की बुख़्ल से महफ़ूज़ रखा जावे, ऐसे ही लोग फ़लाह पाने वाले हैं.
सूरह हश्र 59 आयत (7-9)
" जो खजूर के दरख़्त तुम ने काट डाले या उनको जड़ों पर खड़ा रहने दिया सो अल्लाह के हुक्म के मुवाफ़िक़ हैं ताकि काफ़िरों को ज़लील करे"
"जो कुछ अल्लाह ने अपने रसूल को दिलवाया सो तुमने उन पर न घोड़े दौड़ाए न ऊँट, लेकिन अल्लाह अपने रसूल को जिस पर चाहे मुसल्लत कर देता है और अल्लाह को हर चीज़ पर पूरी क़ुदरत है कि जो अपने रसूल को दूसरी बस्तियों के लोगों से दिलवाए. रसूल जो कुछ तुम्हें दें, ले लिया करो. और जिसको रोक दें, रुक जाया करो, अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह सख़्त सज़ा देने वाला है."
"अगर हम इस क़ुरआन को पहाड़ नाज़िल करते तो तू इसको देखता कि अल्लाह के खौ़फ़ से डर जाता और फट जाता और इन मज़ामीन अजीबया को हम लोगों के लिए बयान करते हैं ताकि वह सोचें."
सूरह हश्र 59 आयत (8-2)
बस्ती बनी नुज़ैर की लूट पाट में मुहम्मद को पहली बार माली फ़ायदा हुवा.
माले-ग़नीमत को लेकर मदीने के लुटेरे मुहम्मद से काफ़ी नाराज़ है कि उनको नज़र अंदाज़ किया जा रहा है.
मुहम्मद उन्हें तअने दे रहे हैं कि
"तुमने उन पर न घोड़े दौडाए न ऊँट, लेकिन अल्लाह अपने रसूल को जिस पर चाहे मुसल्लत कर देता है "
जो कुछ मिल रहा है, रख लो.
रसूल के अल्लाह पर एक नज़र डालें, वह भी रसूल की तरह ही मौक़ा परस्त है
"सो इन पर अल्लाह ऐसी जगह से पहुँचा कि इनको गुमान भी न था, इनके दिलों में रोब डाल दिया था कि अपने घरों को ख़ुद अपने हाथों से उजाड़ रहे थे,"
मुहम्मद अपनी छल कपट से अल्लाह बन बैठे थे मगर मॉल-ग़नीमत के लालची सब कुछ समझते हुए भी खामोश रहते. अल्लाह को मानो चाहे न मानो, मुहम्मद को मिलना चाहिए माल.
मुहम्मद ने अल्लाह की वहियाँ उतारते हुए और मुहाजिरों की हक़ अदाई का सहारा लेते हुए, लूटे हुए तमाम मॉल को अपने हक़ में कर लिया.
इतिहास कार कहते हैं कि उन्हों ने इस लड़ाई में मिले मॉल को अपने घरो के लिए रख लिया था और अपनी नौ बीवियों के नाम बनी नुज़ैर की तमाम जायदाद वक्फ़ कर दिया था.
हरामी ओलिमा लिखते हैं कि
''सल्लल्हो अलैहे वासलं ने जब रेहलत की तो उनके जेब में कुल छ दरहम मिले. वहीँ दूसरी तरफ़ कहते हैं कि रसूल की बीवियाँ धन दौलत की आमद से ऐसी बेनयाज़ होतीं कि पलरों में अशर्फियाँ आतीं मगर उनको कोई ख़बर न होती कि वह सब गरीबों में तकसीम हो जातीं."
ख़ुद साख़्ता पैग़ामबर मुहम्मद के ज़माने में इनकी क़ुरआनी बरकतों से मुतास्सिर होकर जो ईमान लाए वह अक़ली मैदान में निरा गधे थे,
इन में जो शामिल नहीं, वह सियासत दान थे, चापलूस थे, मसलेहत पसंद गुडे या फिर गदागर थे.
इन में जो शामिल नहीं, वह सियासत दान थे, चापलूस थे, मसलेहत पसंद गुडे या फिर गदागर थे.
बाद में तो तलवार के ज़ोर से सारा अरब इस्लाम का बे ईमान,
ईमान वाला बन गया था.
इस से इनका फ़ायदा भी हुवा मगर सिर्फ़ माली फ़ायदा.
माले-ग़नीमत ने अरब को मालदार बना दिया.
उनकी ये ख़ुश हाली बहुत दिनों तक क़ायम न रही,
हराम की कमाई हराम में गँवाई.
मगर हाँ तेल की दौलत ने इन्हें गधा से घोडा ज़रूर बना दिया है.
अफ़सोस ग़ैर अरब मुसलमानों पर है कि जो जेहादी असर के तहत या किसी और वजेह से क़ुरआनी अल्लाह और उसके रसूल पे ईमान लाए,
वह गधे बाक़ी बचे न घोड़े बन पाए, सिर्फ़ खच्चर बन कर रह गए हैं
जो ग़ैर फितरी और ग़ैर इंसानी निज़ामे मुस्तफ़ा को ढो रहे हैं.
तालीमी दुन्या में इनकी नस्ल अफ़ज़ाई कभी भी नहीं हो सकती.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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