मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हदीद -57 - سورتہ الحدید
(मुकम्मल)
सूरह हदीद के बारे में मेरा इन्केशाफ़ और ख़ुलासा ये है
कि इसका रचैता मुहम्मदी अल्लाह नहीं है, बल्कि इसका बानी कोई यहूदी है. इस सूरह में मुहम्मद की बड़बड़ नहीं है. ये सूरह तौरेत के ख़ालिस नज़रिए पर आधारित है क्यूँकि क़यामत ऐन यहूदियत के मुताबिक़ है.
मज़मून कहीं पर बहका नहीं है, बातों को पूरा करते हुए आगे बढ़ता है.
इसमें तर्जुमान को कम से कम बैसाखी लगानी पड़ी है
और सूरह में बहुत कम ब्रेकेट नज़र आते है.
तूल कलामी और अल्लाह की झक तो कहीं है ही नहीं.
तहरीर ज़बान और क़वायद के ज़ाबते में है
जो ख़ुद बयान करती है कि ये उम्मी मुहम्मद की बकवास नहीं है.
इसके पहले भी इसी नौअय्यत की एक सूरह क़सस 28 गुज़र चुकी है.
इसका मतलब ये भी नहीं है कि इन बातों में कोई सच्चाई हो.
"अल्लाह की पाकी बयान करते हैं, सब जो कुछ कि आसमानों और ज़मीन में है और वह ज़बरदस्त हिकमत वाला है.
उसी की सल्तनत है आसमानों ज़मीन की. वही हयात देता है
वही मौत भी देता है. और वही हर चीज़ पर क़ादिर है.
वही पहले है, वही पीछे, वही ज़ाहिर है, वही मुख़फ़ी.
और वह हर चीज़ को ख़ूब जानने वाला है.
वह ऐसा है कि उसने आसमानों और ज़मीन को छ दिनों में पैदा किया,
फिर तख़्त पर क़ायम हुवा.
वह सब कुछ जानता है जो चीजें ज़मीन के अन्दर दाख़िल होती हैं
और जो चीज़ इस में से निकलती हैं.
और जो चीजें आसमान से उतरती हैं.
और जो चीजें इसमें चढ़ती है.
और तुम्हारे साथ साथ रहता है,
ख़्वाह तुम कहीं भी हो और तुम्हारे सब आमाल भी देखता है."
सूरह हदीद 57 आयत (1-4)
इन आयातों में एक बात भी क़ाबिले एतराज़ नहीं.
मज़हबी किताबों में जैसे मज़ामीन हुवा करते हैं, वैसे ही हैं.
न कोई हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत न किसी नामाक़ूल क़िस्म की क़समें.
न तौरेत और बाइबिल की दुशमनी में आयतें है.
मुनाफ़िक़ लफ्ज़ का मतलब है दोग़ला जो बज़ाहिर कुछ हो और बबातिन कुछ. जैसे आज के वक़्त में मुनाफ़िक़ हर पार्टी और हर जमाअत में कसरत से पाए जाते हैं. ये दग़ाबाज़ दोस्त होते है जो मतलब गांठा करते है.
"कोई शख़्स है कि जो अल्लाह तअला को क़र्ज़ के तौर पर दे,
फिर अल्लाह इस शख़्स के लिए बढ़ाता चला जाए
और इस के लिए उज्र पसन्दीदा है.
जिस रोज़ मुनाफ़िक़ मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें मुसलमानों से कहेंगे
अरे मुस्लिम भाइयो! हमें भी पार कराओ, हम तो पीछे रहे जा रहे हैं,
आख़िर दुन्या में हम तुम मिल जुल कर रहा करते थे,
दुन्या में हम तुम्हारे साथ न थे?
जवाब होगा हाँ थे तो, तुमने अपने आप को गुमराही में फँसा रखा था.
तुम मुन्तज़िर रहा करते थे, तुम शक रखते थे
और तुम को तुम्हारी बेजा तमन्नाओं ने धोके में डाल रख्खा था
तुम सब का ठिकाना दोज़ख़ है.
पीछे रह गए हो तो पीछे से रौशनी भी तलाश करो.
फिर इन फ़रीकैन के दरमियान में एक दीवार क़ायम कर दी जाएगी.
इस में एक दरवाज़ा होगा,
जिसकी अन्दुरूनी जानिब से रहमत होगी
और बैरूनी जानिब से अज़ाब."
सूरह हदीद 57 आयत (11-13)
देखिए कि अल्लाह बन्दों से क्या तलब कर रहा है,
कोई इशारा है? नमाज़, रोज़ा, ज़कात और जेहाद कुछ भी नहीं,
ग़ालिबन अपने बन्दों से नेक काम तलब कर रहा है.
उसके पास नेकियाँ जमा करो, वह मय सूद ब्याज के देगा.
इस तरह के झूट कडुवी सच्चाई से बेहतर है.
मेरा मुशाहिदा है कि इसी दुन्या में इंसान की नेकियों का बदला मिल जाता है, मगर कोई मज़हब इस के लिए कहता है तो इंसानों के हक़ में है
कि इंसान नेकियाँ करे.
"पीछे रह गए हो तो पीछे से रौशनी भी तलाश करो"
क्या बलाग़त है इस जुमले में. इसे कहते है वह्यी औए ईश वानी.
वक़्त के साथ न बदलने वालों के लिए ये उस मुफ़क्किर की सोलह आने ठीक राय है, जो आज मुसलमानों के लिए मशअले राह है.
उनको बदलना ही होगा और इतना बदलना होगा कि
क़ुरआन की खुल कर मुख़ालिफ़त करे.
इस आयत में कुफ़्फ़ारों पर लअन तअन नहीं की गई है और न ईसाइयों पर दिल शिकन जुमले, बल्कि दोहरा सवाब, पहला ईसाइयत का दूसरा, इस्लाम का.
जन्नत और दोज़ख़ में भी एतदाल है
कि दोनों फ़रीक आपस में बज़रिए
" इस में एक दरवाज़ा होगा"
तअल्लुक़ से एक दूसरे की हवा पहचानेंगे.
"ये दोज़ख़ी जन्नातियों को पुकारेंगे, क्या हम तुम्हारे साथ न थे?
जन्नती कहेंगे, हाँ थे तो सहीह लेकिन तुम को गुमराहियों ने फँसा रख्खा था
कि तुम पर अल्लाह का हुक्म आ पहुँचा और तुम को धोका देने वाले अल्लाह के साथ धोके में डाल रख्खा था, गरज़ आज तुम से न कोई मावज़ा लिया जायगा और न काफ़िरों से, तुम सब का ठिकाना दोज़ख़ है. वही तुम्हारा रफ़ीक है, और वह वाक़ई बुरा ठिकाना है."
"कोई मुसीबत न दुन्या में आती है और न तुम्हारी जानों में
मगर वह एक ख़ास किताब में लिखी है.
क़ब्ल इसके कि हम उन जानों को पैदा करें, ये अल्लाह के नज़दीक आसान काम है, ताकि जो चीज़ तुम से जाती रहे, तुम इस पर रन्ज न करो और ताकि जो चीज़ तुमको अता फ़रमाई है, इस पर तुम इतराओ नहीं. अल्लाह तअला किसी इतराने वाले शेखी बाज़ को पसन्द नहीं करता."
सूरह हदीद 57 आयत (14-23)
क़ाबिले क़द्र बात मुफ़क्किर कहता है
"जो चीज़ तुम से जाती रहे, तुम इस पर रन्ज न करो और
ताकि जो चीज़ तुमको अता फ़रमाई है,
इस पर तुम इतराओ नहीं."
ये ज़िन्दगी का सूफ़ियाना फ़लसफ़ा है
"वक़्त है अहले ईमान अपना दिल बदलें.
ऐसा न हो कि अहले किताब की तरह माहौल ज़दा
और सख़्त दिल होकर काफ़िर जैसे हो जाएं.
अल्लाह खुश्क ज़मीन को दोबारा जानदार बना देता है
ये एक नज़ीर है ताकि तुम समझो.
सदक़ा देने वाले मर्द और औरत को अल्लाह पसंद करता है.
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं,
ऐसे लोग अपने रब की नज़र में सिद्दीक़ और शहीद हैं.
दिखावा लाह्व लआब है. औलाद ओ अमवाल पर फ़ख़्र बेजा है.
मग़फ़िरत और जन्नत की तरफ़ दौड़ो जिसकी वोसअत ज़मीन ओ आसमान के बराबर है, उन लोगों के लिए तैयार की गई है जो अल्लाह और इसके रसूल पर ईमान रखते हैं.अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला है."
सूरह हदीद 57 आयत (16-21)
क्या ये दानाई और बीनाई उम्मी रसूल के बस की है.
इसी लिए इस सूरह को जदीद कहना चाहिए.
मगर ऐ मुसलमानों क्या अल्लाह भी क़दीम और जदीद हवा करता है?
अल्लाह को तुम आयाते-क़ुरआनी में नहीं पाओगे.
अल्लाह तो सब को मुफ़्त मयस्सर है, हर वक़्त तुम्हारे सामने रहता है.
सच्चा ज़मीर ही अल्लाह तक पहुंचाता है.
मुझ तक अल्लाह यार है मेरा, मेरे संग संग रहता है,
तुम तक अल्लाह एक पहेली, बूझे और बुझाए हो.
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"जो ऐसे हैं ख़ुद भी बुख़्ल करते हैं और दूसरों को भी बुख़्ल की तअलीम करते हैं और जो मुँह मोड़ेगा तो अल्लाह भी बे नयाज़ है और लायक़े-हम्द है. हम ने इस्लाह ए आख़िरत के लिए पैग़ामबर को खुले खुले पैग़ाम देकर भेजा है. हमने उन के साथ किताब को और इन्साफ करने वाले को नाज़िल फ़रमाया ताकि लोग एतदाल पर क़ायम रहें,
हम ने नूह और इब्राहीम को पैग़ामबर बना कर भेजा और हम ने उनकी औलादों में पैग़मबरीऔर किताब जारी रख्खी सो उन लोगों में बअजे तो हिदायत याफ़ता हुए और बहुत से इनमें नाफ़रमान थे.फिर और रसूलों को एक के बाद दीगरे को भेजते रहे.
और इसके बाद ईसा बिन मरियम को भेजा और हम ने इनको इंजील दी और जिन लोगों ने इनकी पैरवी की, हमने उनके दिलों में शिफ़क़त और तरह्हुम पैदा की.
उन्हों ने रह्बानियत को ख़ुद ईजाद कर लिया.
हमने इसको इन पर वाजिब न किया था.
ए ईसा पर ईमान रखने वालो! तुम अल्लाह से डरो और इन पर ईमान लाओ. अल्लाह तअला तुमको अपनी रहमत से दो हिस्से देगा और तुमको ऐसा नूर इनायत करेगा कि यूं इसको लिए हुए चलते फिरते होगे और तुमको बख़्श देगा. अल्लाह ग़फ़ूरुर रहीम है.
सूरह हदीद 57 आयत (24-28)
मैंने मज़कूरा बाला सूरह को सिर्फ़ इस नज़रिए से देखा,
समझा और पेश किया है कि क़ुरआन सिर्फ़ उम्मी मुहम्मद की ही नहीं,
बल्कि इसमें दूसरों की मिलावट भी है,
इसके लिए मैं उस सलीक़े मंद और दूर अंदेश दानिश वर का शुक्र गुज़ार हूँ जिसने क़ुरआन की हक़ीक़त से हमें रूशिनास कराया.
अच्छा इंसान रहा होगा जो हालात का शिकार होकर मुसलमान हो गया होगा, मगर उसने मुनाफ़िक़त को ओढ़ कर इंसानियत का हक़ अदा किया
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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