सच्चा रहनुमा कौन है?
मुसलमानों - - -
* क्या आप ने कभी ग़ौर किया कि किस मसलके-इस्लाम से आप हैं ?
* क्या आपने कभी ख़याल किया कि आप का महफ़ूज़ मुल्क कहाँ है?
* क्या आपने कभी सोचा कि आप में से किसी ने इस धरती को कुछ दिया,
जिससे सब कुछ ले रहे है?
* क्या आप ने कभी खोजबीन की कि मौजूदा ईजाद और तरक़्क़ी में आपका कोई योगदान है? जब कि भोगने में सब से आगे है ?
* क्या आप ने कभी ख़याल किया कि अपनी नस्लों के लिए किया कर रहे हैं?
बतौर नमूने के यह चन्द सवाल मैंने आपके सामने रख्खे हैं,
सवाल तो सैकड़ों हैं.
बग़ैर दूर अंदेशी के जवाब तो आपके पास हर सवाल के होंगे
मगर हक़ीक़त में आप के पास कोई मअक़ूल जवाब नहीं,
अलावः शर्मसार होने के,
क्यूँकि आपको मुहम्मदी अल्लाह ने आप को ग़ुमराह कर रखा है
कि यह दुन्या फ़ानी है और आक़बत की ज़िदगी लाफ़ानी.
इस्लाम 90% यहूदियत है और यह अक़ीदा भी उन्हीं का है.
वह इसे फ़रामोश करके आसमान में सुरंग लगा रहे हैं
और मुसलमान उनकी जूठन चबा रहे हैं.
पहला सवाल है मुसलमानों की रहनुमाई का?
अलावा रूहानी हस्तियों के कोई क़ाबिले ज़िक्र नहीं,
रूहानियत जो अपने आप में इंसान को निकम्मा बनाती है,
इनको छोड़ कर जिसके शाने बशाने आप हों?
आला क़द्रों में कबीर, शिर्डी का साईं बाबा जैसे जो आपके लिए
नियारया हो सकते थे उनको आप ने इस्लाम से ख़ारिज कर दिया
और वह हिन्दुओं में बस कर उनके अवतार बन गए.
माज़ी क़रीब में क़ायदे-आज़म मुहम्मद अली जिना
शराब और सुवर के गोश्त के शौक़ीन थे,
कभी भूल कर नमाज़ रोज़ा नहीं किया,
कैसे पाकिस्तानियों ने उनको क़ायदे-आज़म बना दिया?
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद सूरज डूबते ही शराब में डूब जाते थे.
ए.पी.जे अब्दुल कलाम तो मौजूदा ही हैं,
मुसलमान उनको मुहम्मदी हिन्दू कहते हैं.
इनमें से कोई इस्लाम की कसौटी पर खरा नहीं उतरता.
गाँधी जी जो आप के हमदर्दी में गोली के शिकार हुए,
उनको आप के ओलिमा काफ़िर कहते हैं.
बरेली के आला हज़रात ने तो उनकी अर्थी यात्रा में शामिल होने वाले
मुसलमानों को काफ़िर का फ़तवा दे दिया था.
एक कमाल पाशा तुर्की में मुस्लिम रहनुमा सही मअनो में हुवा,
जिसको इस्लामी दुन्या क़यामत तक मुआफ़ नहीं करेगी.
पिछली चौदह सदियों से आप लावारिस हैं,
क्यूँकि आप का वारिस, मालिक, रहनुमा है मुहम्मदी अल्लह
और वह फ़रेब जिसके आप शिकार हैं आप के आख़रुज़्ज़मा,
सललल्लाहो अलैहे वसल्लम.
आप किस टाइप के मुसलमान है?
टाईप नंबर एक तो आप को काफ़िर कहता है.
हर मस्जिद किसी न किसी मुल्ला की हुकूमत बनी हुई है.
ख़ुद मुहम्मद ने मस्जिदे नबवी को अपने हाथों से मदीने में मिस्मार किया
कि वह काफ़िरों की मस्जिद हो गई थी.
अली ने तीनो ख़लीफ़ाओं को क़त्ल कराया,
यहाँ तक कि उस्मान ग़नी की लाश तीन दिनों तक सड़ती रही,
तब रहम दिल यहूदियों ने उनको अपने क़ब्रिस्तान में दफ़नाया था.
दुन्या भर में बक़ौल मुहम्मद अगर मुसलमानों के 72 फिरक़े हो चुके थे,
तो उनमें से 71 आपका जानी दुश्मन है.
फिर भी आप मुसलमान हैं?
जाएँगे भी कहाँ? सोचें कि कोई रास्ता बचा है आपके लिए?
आपका कोई मुल्क नहीं,
आप आज़ादी के साथ कहीं भी नहीं रह सकते,
हर मुल्क में आप पड़ोस में दुश्मन पाले हुए हैं.
आपका कोई मुल्क हो ही नहीं सकता,
तमाम दुन्या पर इस्लाम को छा देने की आप का मिशन जो है.
आप को अमलन देखा गया है कि मुस्लिम हुक्मरान हमेशा
एक दूसरे को फ़तह करते रहे.
बस काबे में आप सब ज़रूर इकठ्ठा होते हैं,
लबबैक कह कर, ताकि क़ुरैशियों को इमदाद जारिया हो
और आप को मुहम्मदी सवाब मिले.
आप ने ख़िदमत ए ख़ल्क़ के लिए कोई ईजाद की?
कोई तलाश कोई या कोई खोज मुसलमानों द्वारा वजूद में आई ?
आप दो चार मुस्लिम नाम गिना सकते हैं और
ए. पी जे. अब्दुल कलाम को भी पेश कर सकते हैं,
मगर आप अच्छी तरह जानते हैं कि साइंटिस्ट कभी मुसलमान हो ही नहीं सकता. मुसलमान तो सिर्फ़ अल्लाह का खोजी होता है
और मुसलमान उम्मी मुहम्मद को सब से बड़ा साइंसदान ख़याल करता है.
जहाँ कोई फ़नकार बना कि टाट पट्टी से बाहर हुवा.
मकबूल फ़िदा हुसैन या नव मुस्लिम ए. आर. रहमान जैसी
आलमी हस्तियाँ क्या इस्लाम को गवारा हैं?
हम तो यहाँ तक कहेंगे कि मुसलमानों को नई ईजादों की बरकतों को
छूना भी नहीं चाहिए, चाहे रेल हो या हवाई सफ़र हो,
चाहे बिजली हो. मोबाईल हो, कप्यूटर हो,ए.सी हो,
मुसलमानों के लिए हराम हो जाना चाहिए,
या फिर आप पर इस्लाम हराम हो जाना चाहिए
तब होश ठिकाने आएँगे.
साइंस की तअलीम भी मुसल्म्मानों लिए ममनू हो
अगर तालिब इल्म इस्लामी अक़ीदे का हो,
वरना जदीद इल्म का इस्तेमाल इनको तालिबान बना कर
इंसानियत पर ख़ुदकुश बम बन कर नाज़िल होता रहेगा.
क्या आपने कभी सोचा कि मुहम्मद के बाद मुसलमानों में कोई
आलमी हस्ती पैदा हुई है?
कोई नहीं.
उन्होंने इसकी इजाज़त ही नहीं दी.
ज़माना जितना आगे जाएगा, मुसलमान उतना ही पीछे चला जायगा.
एक दिन इसके हाथ में झाड़ू पंजा आ जाएगा.
इसकी अलामत बने मज़लूम बिरादरी ( मेहतर ) भी जग गई है
मगर मुसलमानों की नींद ही नहीं खुल रही है.
मुसलमानों !
मोमिन आप के साथ रहते हुए आप को जगा रहा है,
वरना उसके लिए बड़ा आसान था ईसाई या हिन्दू बन जाना.
क्यूं अपनी जान को हथेली पर रख कर मैदान में उतरा?
इस लिए कि आप लोग सब से ज़्यादः इंसानी बिरादरी की आँखों में खटक रहे हो.
मै आपका कुछ भी नहीं छीनना चाहता,
जैसे हैं, जहाँ हैं, बने रहिए,
बस ईमानदार मोमिन बन जाइए,
देखिएगा कि ज़माने कि नफ़रत आपकी पैरवी में बदल जाएगी.
इस्लामी ओलिमा को अपनी ड्योढ़ी मत लांगने दीजिए,
इन्हें गलाज़त आलूद खिंजीर मानिए.
इनके अलावा जो भी आपको इस्लाम के हक़ में समझाए,
देखिए कि इसकी रोज़ी रोटी तो इस्लाम से वाबिस्ता तो नहीं है?
ऐसे लोगों की मदद कीजिए कि वह हराम ज़रीआ मुआश बदल सकें.
आप जागिए और दूसरों को जगाइए.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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