जो हमें होना चाहिए, वह हूँ.
मेरा कोई धर्म नहीं, कोई मज़हब नहीं, कोई देश नहीं.
मैं भारत माता का नहीं धरती माता का बेटा हूँ और अपनी माँ की औलाद हूँ.
भारत हो या ईरान, सब अंतर राष्ट्रीय घेरा बंदीयां हैं,
इन अंतर राष्ट्रीय सीमा बंदीयों के ख़ानों में क़ैद,
मैं अवाम हूँ.
हुक्मरानों के एलान में क़ैद,
हम देश प्रेमी है, या देश द्रोही हैं ?
या उनके मुताबिक अपराधी?
जो हमें होना चाहिए, मैं वह हूँ.
इन सीमा बंदियों में रहने के लिए हम महज़ एक किराए दार मात्र हैं.
इसी सीमा में हम और हमारा कुटुम्भ और क़बीला रहता है.
इन्हीं हुक्मरानों ने हमारी सुरक्षा का वादा किया है, दूसरे हुक्मरानों से.
मैं, अपने हम को लेकर, इस धरती के टुकड़े पर रहने का वादा कर लिया है.
इस देश के लिए हमें Tex भरने में ईमान दार होना चाहिए,
किसी देश प्रेमी की यह पहली शर्त है.
और ज़रुरत पड़े तो इसके लिए हमें अपने जान माल को क़ुरबान कर देना चाहिए.
नक़ली देश प्रेम के नाम का नारा लगा कर लुटेरे अपनी तिजरियाँ भरते है
और किसी मानव समूह को तबाह करने की साज़िश में क़हक़हे लगाते हैं.
देश प्रेम नहीं कर्तव्य पालन की चाहत हमारे दिलों में होनी चाहिए.
और धरती प्रेम की आरज़ू.
तभी हम एक ईमान दार और नेक शहरी बन सकते हैं.
मेरी दिली चाहत है कि मैं धरती माता के उस हिस्से का वासी बन जाऊं
जहाँ नवीन मानव मूल्य परवान चढ़ रहे हों.
और ख़ुद को उस देश को अपने जान माल के साथ समर्पित करदूं.
भौगोलिकता हमारी कमज़ोरी है,
भारत का बंदा नार्वे में तो सहज नहीं हो सकता.
भौगोलिक स्तर पर वह देश मेरा प्रदेश है जिसे क़ुदरत ने भरपूर नवाज़ा है.
और पाखंडी धूर्तों ने उसे लूटा है.
मेरी दिली तमन्ना है कि धरती का यह भू भाग नार्वे और स्वीडन आदि को पछाड़ कर पहले नंबर पर पहुंचे.
इसके लिए मैं अपने शारीर का हर एक अंग समर्पित कर चुका हूँ,
जैसे कि जानवर समर्पित करते हैं.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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