दर्जात-ए-इंसानी
आम तौर पर दुन्या में तीन तरह के लोग होते हैं
जिनको स्तरीय दृष्ट से परखा जा सकता है और दर्जात दिए जा सकते हैं.
अव्वल दर्जा लोग
मैं दर्जा-ए-अव्वल में उन इंसान को शुमार करता हूँ जो सच बोलने में
ज़रा भी देर न करते हों,
उसका मुतालिआ (अध्यन) अश्याए क़ुदरत के बारे में फ़ितरी (लौकिक) हो
(जिसमें ख़ुद इंसान भी एक अश्या है.)
वह ग़ैर जानिबदार हो, अक़ीदा, आस्था और मज़हबी उसूलों से बाला तर हो,
जो जल्द बाज़ी में किए गए "हाँ" को सोच समझ कर 'न' कहने पर
एकदम न शरमाएं और मुआमला साज़ हों.
जो पूरी कायनात के ख़ैर ख़्वाह हों,
दूसरों को माली, जिस्मानी या ज़ेहनी नुक़सान,
अपने नफ़ा के लिए न पहुंचाएं,
जिनके हर अमल में इस धरती और इस पर बसने वाली मख़लूक़ का
ख़ैर वाबिस्ता हो,
जो बेख़ौफ़ और बहादर हों और इतना बहादर कि उसे दोज़ख़ में जलाने
वाला नाइंसाफ़ अल्लाह भी अगर उसके सामने आ जाए तो
उस से भी दस्त व गरीबानी के लिए तैयार रहें .
ऐसे लोगों को मैं दर्जाए अव्वल का इंसान और उच्च स्तरयीय शुमार करता हूँ.
ऐसे लोग ही हुवा करते हैं साहिब-ए-ईमान और ''मर्द -ए-मोमिन''.
दोयम दर्जा लोग
मैं दोयम दर्जा उन लोगों को देता हूँ जो उसूल ज़दा यानी नियमों के मारे होते हैं.
यह सीधे सादे अपने पुरखों की लीक पर चलने वाले लोग होते हैं.
पक्के धार्मिक होते हुए भी अच्छे इंसान भी होते हैं.
इनको इस बात से कोई मतलब नहीं कि इनकी धार्मिकता
समाज के लिए अब ज़हर बन गई है,
इनकी आस्था कहती है कि इनकी मुक्ति नमाज़ और पूजा पाठ से है.
अरबी और संसकृति में इन से क्या पढ़ाया जाता है,
इस से इनका कोई लेना देना नहीं.
ये बहुधा ईमानदार और नेक लोग होते हैं.
शिकारी इस भोली भाली अवाम के लोगों का ही शिकार करता है.
धर्म ग़ुरुओं, ओलिमा और पूँजी पतियों की पहली पसंद होते है यह,
देश की जम्हूरियत की बुनियाद इसी दोयम दर्जे के कन्धों पर रखी हुई है.
सोयम दर्जा लोग
हर क़दम में इंसानियत का ख़ून करने वाले,
तलवार की नोक पर ख़ुद को मोह्सिन-ए-इंसानियत कहलाने वाले,
दूसरों की मेहनत पर तकिया धरने वाले,
लफ़फ़ाज़ी और ज़ोर-ए-क़लम की ग़लाज़त से पेट भरने वाले,
इंसानी सरों के सियासी सौदागर,
धार्मिक चोले धारण किए हुए स्वामी, ग़ुरू, बाबा लंबी दाढ़ी और बड़े बाल वाले,
सब के सब तीसरे दर्जे के लोग हैं.
इन्हीं की सरपरस्ती में देश के मुट्ठी भर सरमाया दार भी हैं,
जो देश को लूट कर पैसे को विदेशों में छिपाते हैं.
यही लोग जिनका कोई प्रति शत भी नहीं बनता,
दोयम दर्जे को ब्लेक मेल किए हुए है
और अव्वल दर्जा का मज़ाक़ हर मोड़ पर उड़ाने पर आमादा रहते है.
सदियों से यह ग़लीज़ लोग
इंसान और इंसानियत को पामाल किए हुए हैं.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
Be Happy Sir !
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