हज़रत यूसुफ़
हज़रत इब्राहीम के पोते याक़ूब अपनी सभी बारह औलादों में
अपने छोटे बेटे यूसुफ़ को सब से ज़्यादः चाहता है.
यह बात यूसुफ़ के बाक़ी सभी भाइयों को खटकती है,
इस लिए वह सब यूसुफ़ को ख़त्म कर देने के फ़िराक़ में रहते हैं.
इस बात का ख़दशा याक़ूब को भी रहता है.
एक दिन यूसुफ़ के सारे भाइयों ने साज़िश करके याक़ूब को राज़ी कर लिया
कि वह यूसुफ़ को सैर व तफ़रीह के लिए बाहर ले जाएँगे,
याक़ूब राज़ी हो गया.
वह सभी यूसुफ़ को जंगल में ले जाकर एक अंधे कुँए में डाल देते हैं
और यूसुफ़ का ख़ून आलूद कपड़ा लाकर याक़ूब के सामने रख कर कहते हैं कहते हैं कि यूसुफ़ को भेड़िए खा गए.
याक़ूब यूसुफ़ की मौत को सब्र करके ज़ब्त कर जाता है.
उधर कुँए से यूसुफ़ की चीख़ पुकार सुन कर राहगीर ताजिर
उसे कुँए से निकाल लेते हैं
और बच्चे को माल ए तिजारत में शामिल कर के आगे बढ़ लेते हैं.
ताजिर उसे मिस्र ले जाकर अज़ीज़ नामी जेलर के हाथों फ़रोख़्त कर देते हैं.
निःसंतान जेलर अज़ीज़ इस ख़ूब सूरत बच्चे को अपना बेटा बनाने का फ़ैसला करता है मगर यूसुफ़ के जवान होते होते अज़ीज़ की बीवी ज़ुलेख़ा इसको चाहने लगती है.
एक रोज़ ज़ुलेख़ा इसको अकेला पाकर इस की क़ुरबत हासिल करने की कोशिश करती है लेकिन यूसुफ़ बच बचा कर इसके जाल से निकलने की कोशिश करता है,
तब ज़ुलेख़ा इसका दामन पकड़ लेती है जो कि कुरते से अलग होकर
ज़ुलेख़ा के हाथ में आ जाता है.
इसी वक़्त इसका शौहर अज़ीज़ घर में दाख़िल होता है,
ज़ुलेख़ा अपनी चाल को उलट कर यूसुफ़ पर इलज़ाम लगा देती है
कि यूसुफ़ उसकी आबरू रेज़ी पर आमादः होगया था.
वह अज़ीज़ से यूसुफ़ को जेल में डाल देने की सिफ़ारिश भी करती है.
बात बढ़ती है तो मोहल्ले के कुछ बड़े बूढ़े बैठ कर मुआमले का फ़ैसला करते हैं
और साबित करते हैं कि यूसुफ़ बच कर भागना चाहता था,
इसी लिए कुरते का पिछला दामन ज़ुलेख़ा के हाथ लगा.
मुखिया ज़ुलेख़ा को क़ुसूर वार ठहराते हैं
और बाद में ज़ुलेख़ा भी अपनी ग़लती को तस्लीम कर लेती है.
इससे मोहल्ले की औरतों में उसकी बदनामी होती है कि
वह अपने ग़ुलाम पर रीझ गई.
जब ये बात ज़ुलेख़ा के कानों तक पहुंची तो उसने ऐसा किया कि
मोहल्ले की जवान औरतों की दावत की
और सबों को एक एक चाक़ू और एक एक नीबू थमा दिया
फ़िर यूसुफ़ को आवाज़ लगाई.
यूसुफ़ दालान में दाख़िल हुवा तो हुस्ने-यूसुफ़ देख कर औरतों ने
चाकुओं से नीबू काटने के बजाएअपने अपने हाथों की उँगलियाँ काट लीं.
अपने तईं औरतों की दीवानगी देख कर यूसुफ़ को अंदेशा होता है कि
वह कहीं किसी ग़ुनाह का शिकार न हो जाए,
अज़ ख़ुद जेल ख़ाने में रहना बेहतर समझता है.
जेल में उसके साथ दो ग़ुलाम क़ैदी और भी होते हैं जिनको वह
ख़्वाबों की ताबीर बतलाता रहता है जो कि सच साबित होती हैं.
कुछ ही दिनों बाद वह क़ैदी रिहा हो जाते हैं.
एक रात बादशाह ए मिस्र एक अजीब ओ ग़रीब ख़्वाब देखता है कि
दर्याए नील से निकली हुई सात तंदुरुस्त गायों को सात लाग़र गाएँ खा गईं और सात हरी बालियों के साथ सात सूखी बालियाँ मौजूद हैं.
सुब्ह को बादशाह ने ख़्वाब की चर्चा अपने दरबारियों में की मगर
ख़्वाब की ताबीर बतलाने वाला कोई आगे न आ सका.
ये बात उस ग़ुलाम क़ैदी तक पहुँची जो कभी यूसुफ़ के साथ जेल में था.
उसने दरबार में ख़बर दी कि जेल में पड़ा इब्रानी क़ैदी ख़्वाबों की सही सही ताबीर बतलाता है, उस से बादशाह के ख़्वाब की ताबीर पूछी जाए,
यूसुफ़ को जेल से निकाल कर दरबार में तलब किया जाता है.
ख़्वाब को सुन कर ख़्वाब की ताबीर वह इस तरह बतलाता है कि
आने वाले सात साल फ़सलों के लिए ख़ुश गवार साल होंगे और
उसके बाद सात साल ख़ुश्क साली के होंगे.
सात सालों तक बालियों में से अगर ज़रुरत से ज़्यादः दाना न निकला जाए तो
अगले सात साल भुखमरी से अवाम को बचाया जा सकता है.
फ़िरअना (फ़िरौन) इसकी बतलाई हुई ताबीर से ख़ुश होता है और यूसुफ़ को जेल से दरबार में बुला कर इसका ज़ुलैख़ा से मुतालिक़ मुक़दमा नए सिरे से सुनता है,
पिछला दामन ज़ुलैख़ा के हाथ में रह जाने की बुनियाद पर
यूसुफ़ बा इज़्ज़त बरी हो जाता है.
यूसुफ़ को इस मुक़दमे से और ख़्वाब की ताबीर से इतनी इज़्ज़त मिलती है कि
वह बादशाह के दरबार में वज़ीर हो जाता है.
बादशाह के ख़्वाब के मुताबिक़ सात साल तक मिस्र में बेहतर फ़सल होती है
जिसको यूसुफ़ स्टोर करता रहता है,
इसके बाद सात सालों की क़हत साली आती है तो
यूसुफ़ अनाज के तक़सीम का काम अपने हाथों में ले लेता है.
क़हत की मार यूसुफ़ के मुल्क कन्नान तक पहुँचती है और
अनाज के लिए एक दिन यूसुफ़ का सौतेला भाई भी उसके दरबार में आता है
जिसको यूसुफ़ तो पहचान लेता है मगर वज़ीर ए खज़ाना को पहचान पाना उसके भाई के लिए ख़्वाब ओ ख़याल की बात थी.
यूसुफ़ भाई की ख़ास ख़ातिर करता है और
उसके घर की जुग़राफ़िया उसके मुँह से उगलुवा लेता है.
वक़्त रुख़सत यूसुफ़ अपने भाई को दोबारा आने और गल्ला ले जाने की दावत देता है और ताक़ीद करता है कि वह अपने छोटे भाई को ज़रूर ले आए.
(दर अस्ल छोटा भाई यूसुफ़ का चहीता था, इसका नाम था बेन्यामीन).
यूसुफ़ ने वह रक़म भी अनाज की बोरी में रख दी जो ग़ल्ले की क़ीमत ली गई थी.
यूसुफ़ का सौतेला भाई जब अनाज लेकर कन्नान बाप याक़ूब के पास पहुँचा तो
वज़ीर ख़ज़ाना ए मिस्र की मेहर बानियों का क़िस्सा सुनाया और कहा कि
चलो खाने का इंतेज़ाम हो गया और साथ में यह भी बतलाया कि
अगली बार छोटे बेन्यामीन को साथ ले जाएगा,
बेन्यामीन का नाम सुन कर याक़ूब चौंका,
कहा कहीं यूसुफ़ की तरह ही तुम इसका भी हश्र तो नहीं करना चाहते?
मगर बाद में वह राज़ी हो गया.
कुछ दिनों के बाद याक़ूब के कुछ बेटे बेन्यामीन को साथ लेकर मिस्र अनाज लेने के लिए पहुँचते हैं.
यूसुफ़ अपने भाई बेन्यामीन को अन्दरूने-महल ले जाता है और
इसे लिपटा कर खूब रोता है और अपनी पहचान को ज़ाहिर कर देता है.
वह आप बीती भाई को सुनाता है और मंसूबा बनाता है कि तुम पर चोरी का इलज़ाम लगा कर वापस नहीं जाने देंगे,
गरज़ ऐसा ही किया.
बग़ैर बेन्यामीन के यूसुफ़ के सौतेले भाई याक़ूब के पास वापस पहुँचे तो
उस पर फ़िर एक बार क़यामत टूटी.
उसने सोचा कि यूसुफ़ की तरह ही बेन्यामीन को भी इन लोगों ने मार डाला.
कुछ दिनों बाद यूसुफ़ सब को मुआफ़ कर देता है और
बादशाह के हुक्म से सब भाइयों, माओं और बाप को मिस्र बुला भेजता है.
याक़ूब के बेटे याक़ूब को और यूसुफ़ की माँ को लेकर यूसुफ़ के पास पहुँचते हैं,
यूसुफ़ अपने माँ बाप को तख़्त शाही पर बिठाता है,
उसके सभी ग्यारह भाई उसके सामने सजदे में गिर जाते हैं,
तब यूसुफ़ अपने बाप को बचपन में देखे हुए अपने ख्व़ाब को याद दिलाता है कि
मैं ने चाँद और सूरज के साथ ग्यारह सितारे देखे थे
जो कि उसे सजदा कर रहे थे, उसकी ताबीर आप के सामने है.''
(सूरह यूसुफ़)
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
यह तौरेत से कॉपी पेस्ट है ।
ReplyDeleteअल्लाह ने तौरेत से जोज़फ की हिस्ट्री चुरा कर सूरह यूसुफ़ बनाई और नाम दिया " अहसनुल क़सस " इस्लाम �� फीसद यहूदी ईजाद है ।अरबिस्तान पहले भी अनपढ़ था ,आज भी उम्मी है।