जन्नत की हूरें
अरबिस्तान (मिडिल ईस्ट) और तुर्किस्तान (मध्य एशिया) के बाशिदे सेक्सी हुवा करते हैं. इस में अय्याशी कम, संतान उत्पत्ति का जज्बा ज्यादा कारगर है. क्योंकि बच्चे ही उनकी असली संपति होती है.
उनकी औरतें बच्चा पैदा करने की मशीन होने में समाज का गौरव हुवा करती हैं. हमारे उप महाद्वीप खास कर भारत के लोग सेक्स से ज्यादा,
आध्यात्मिक हुवा करते हैं. वह सेक्स से दूर भागते हैं.
सेक्स को समाधि मानते हैं.
वह इससे बचने के लिए योगी और सन्यासी बन जाते हैं,
यहाँ ताक कि साधु साध्वी और ब्रह्मचारी भी.
बाल ब्रहमचर्य तो यहाँ महिमा मंडित हुवा करते हैं,
गोया महात्मा ने कभी सेक्स-पाप नहीं किया.
बड़ा शांत स्वभाव होता है इनका. एक सामान्य मर्द याऔरत,
इन्हें नपुंसक भी कह सकते है.
अरबिस्तान और तुर्किस्तान के बाशिदों का मिज़ाज इसके उल्टा होता है.
वहां ब्रहमचर्य का तसव्वुर भी नहीं होता.
बहु विवाह और अनेक बच्चे वाले ही वहां का सम्मान है.
इस्लाम तो ब्रहमचर्य को हराम समझता है.
न संभोग तो घर बार की ज़िम्मेदारी ही सही,
एक बेबसऔरत या बेवा का सहारा ही सही.
वहां मुस्लिम में माँ, बहिन, बेटियों के लिए कोई आश्रम नहीं होता.
न ही बनारस और विन्द्रा वन जैसे पंडों का बनाया गया क़ैद खाना
जिस में वह अय्याशी भी करते हैं और देह व्योपार भी.
हिन्दू भगवन से मोक्ष की प्रार्थना करता है.
इसके बर अक्स
इस सेक्सी समाज के लिए अल्लाह कहता है
तुम अपनी समाजी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभावगे
तो तुमको मरने के बाद भी sex के लिए हूरों के झुण्ड देंगे.
इनका अल्लाह झूटा हो या बे ईमान,
औरतों की हिफाज़त करने में सफल है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
Haa haa haa dewobandiyon
ReplyDeleteسر جی ! آپ کی ہر تحریر قابل ِ قابل تحسین ہوتی ہے لیکن چونکہ آپ گھما پھرا کر سیکس(sex)پر آجاتے ہیں
ReplyDeleteپاجی ! ہم پنجابی لوگ مہذب ہوتے ہیں لیکن کیا کریں؟ جگہ جگہ سیکسی آیات ہمیں ڈسٹرب کرتی رہتی ہیں . ہم ھندوستانی آرین اصلاً ھندو ہیں اور ہمارے یہاں سیکس جیسے لفظ کو علی الاعلان کہنے میں شرم آتی ہے . پتہ نہیں کیسے عرب کے لوگ پچاس پچاس بار سیکس کر کے بھی ,,سیکس سیکس ,کی رٹ لگائے رہتے ہیں؟ کاش ان عربوں کو کوئی سمجھائے ؟