मेरा इख़्तिसार (संक्षिप्त)
ख़ुश हाल किसान का पोता और बदहाल मज़दूर का बेटा,
मैं एक साधारण परिवार से हूँ .
दस साल की उम्र तक स्कूल का मुंह नहीं देखा था,
मामा ने मोहल्ले में जूनियर हाई स्कूल खोला,
पांचवीं पास बच्चे उन्हें कक्षा 6 के लिए मिल गए,
बाहर बरांडे में मोहल्ले के अनपढ़ और लाख़ैरे बच्चे बैठने लगे,
उनमें से एक भी था.
पढ़ाई की ललक दिल में थी मामा ने मुझे समझा और
कक्षा ६ में मुझे बैठने की इजाज़त दे दी.
मुझे तालीम का सिरा मिल गया था,
मैं दर्जा नौ में आते आते क्लास टॉप कर गया.
और पांच साल में ही हाई स्कूल कर लिया.
बदहाली ने आगे पढ़ने न दिया,
पांच साल ग़ुरबत से लड़ने की नाकाम कोशिश की,
उसके बाद तरक़्क़ी का सिरा मेरे हाथ लगा,
पुवर फंड लेकर पढ़ने वाले तालिब इल्म ने लाखों रुपए इनकम टैक्स भरे.
बड़ी ईमानदारी की रोज़ी कमाई.
साठ साल की उम्र आते आते अपनी माली तरक़्क़ी से भी मेरा मन भर गया.
मैं सोलह साल की नाबालिग़ उम्र तक मज़हबी रहा,
उसके बाद मज़हब को मैंने अपनी आँखों से देखना शुरू किया ,
मैं ने पाया कि धर्म व् मज़हब में जितना झूट और फ़रेब है,
उतना और कहीं नहीं .
कारोबार से फ़ारिग़ होने के बाद मैंने अपना समय सच्चाई को पाने के
लिए वक़्फ़ कर दिया,
सालों साल से दिल में जमा उदगार फटने लगा.
मैं 50 साल से अपनी तहरीर से इंसानी ज़ेहन खोल रहा हूँ,
जिसमें शेर व् शायरी भी एक माध्यम है .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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