"अबू अब्दुल्ला मुहम्मद इब्ने इब्राहीम मुग़ीरा जअफ़ी बुख़ारी
अल्लाह के मुँह से कहलाई गई मुहम्मद की बातें क़ुरआन जानी जाती हैं
और मुहम्मद के क़ौल व फ़ेल और कथन हदीसें कहलाती हैं.
मुहम्मद की ज़िन्दगी में ही हदीसें इतनी भरमार हो गई थीं
कि उनको मुसलसल बोलते रहने के लिए मुहम्मद को सैकड़ों सालों की ज़िन्दगी चाहिए थी,
ग़रज़ उनकी मौत के बाद हदीसों पर पाबन्दी लगा दी गई थी,
उनके हवाले से या हदीसों के हवाले से बात करने वालों की ख़ातिर कोड़ों से होती थी.
डेढ़ सौ साल बाद बुख़ारा में एक मूर्ति पूजक वंश का इब्राहीम मुग़ीरा जअफ़ी मुसलमान हो गया था.उसका पोता
"अबू अब्दुल्ला मुहम्मद इब्ने इब्राहीम मुग़ीरा जअफ़ी बुख़ारी'' हुवा जो कि उर्फ़ ए आम में इमाम बुख़ारी के नाम से इस्लामी दुन्या में जाना जाता है,
उसने मुहम्मद की तमाम ख़सलतें, झूट, मक्र, ज़ुल्म, ना इंसाफी, बे ईमानी और अय्याशियाँ खोल खोल कर बयान की हैं जिसे गाऊदी मुसलमान समझ ही नहीं सकते.
इमाम बुख़ारी ने किया है बहुत अज़ीम काम जिसे इस्लाम के ज़ुल्म और जब्र के ख़िलाफ़ ''इंतकाम -ऐ-जारिया'' कहा जा सकता है."
अंधे, बहरे और गूंगे मुसलमान उसकी हिकमत-ए-अमली को नहीं समझ पाएँगे,
वह तो ख़त्म कुरआन की तर्ज़ पर ख़त्म बुख़ारी शरीफ़ के कोर्स बच्चों को करा के इंसानी जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहे हैं.
इस्लामी कुत्ते, ओलिमा लिखते हैं कि
"इमाम बुख़ारी ने छः लाख हदीसों पर शोध किया और तीन लाख हदीसें कंठस्त कीं,
इतना ही नहीं तीन तहज्जुद की रातों में एक क़ुरआन ख़त्म कर लिया करते थे
और इफ़्तार से पहले एक क़ुरआन. हर हदीस लिखने से पहले दो रेकत नमाज़ पढ़ते."
ज़रा ग़ौर करिए इसके लिए इमाम बुख़ारी को कितने हज़ार साल की उम्र दरकार होती ?
तीन लाख सही हदीसों हाफिज़ दावेदार लिखने पर आए तो सिर्फ १०००० से भी कम हदीसें क़लम बंद कर सके. उनको खंगाल कर उर्दू आलिम अब्दुल दायम अल्जलाली ने २१५५ हदीसें चुनीं.
नाम किताब "जदीद सहिह बुख़ारी शरीफ़ उर्दू "जिसे हवाले के लिए मैंने
"जदीद बुख़ारी" लिखा है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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