Saturday, 28 November 2020

अली ने एक क़ौम को जिंदा जला डाला

000
अली ने एक क़ौम को जिंदा जला डाला 

हदीस बुख़ारी जदीद उर्दू - 1245

"अली ने एक क़ौम को जिंदा जला दिया, 
ये बात जब उनके चचा अब्बास के कान में पड़ी तो उन्हें उनके इस फ़ेल का सदमा हुवा. उन्होंने ने कहा ये सज़ा अल्लाह को ही ज़ेब देती है, 
बल्कि जो शख़्स अपना दीन बदल दे उसको क़त्ल कर देना चाहिए।" 
*शिया हज़रात ने अली मौला के इतने क़सीदे गढ़े हैं कि हिटलर का शागिर्द मौसुलेनी इनके आगे पानी भरे. उनको मिनी अल्लाह (मौला) कहते हैं, जिनकी हक़ीक़त हदीसें जगह जगह खोलती हैं कि वह घस खुद्दे थे, बुज़दिल थे, लालची थे और इन्तेहाई ज़ालिम शख़्स भी थे. 
जनाब अली मौला ने एक क़ौम को जिंदा जला डाला, मुहम्मद से चार क़दम आगे. भला उस क़ौम की क्या ग़लती रही होगी ? 
वह कितनी बे यार ओ मदद गार रही होगी कि ज़ालिमों के हाथों जल मरी. 
अली के इस अमल से बजरंग दल के दारा सिंह का वाक़ेया ज़ेहन में ताज़ा हो गया, जिसने कार में सोए हुए मिशन के एक ख़ुदाई ख़िदमत गार को उसके दो बच्चों समेत जिंदा जला दिया था. 
एक मुसलमानों का तब्कः कहता है कि इस्लाम को फैलाने में अली मौला का बड़ा हाथ था. इनमे से कुछ इन्हें मुहम्मद के बाद मानते हैं तो कुछ मुहम्मद से पहले. 
इनकी इस मज़मूम और मकरूह कार गुज़ारी के बाद हज़ारो लोग इस मौला को "अली दम दम दे अन्दर और अली का पहला नंबर" 
का दम भरते हैं,
इनमे कोई अज़मत पैदा हो ही सकती नहीं सकती. 
उनकी औलादों का क्या हश्र हुवा ? शायद अली की बद आमालियों का अंजाम है कि  उनके मानने वाले चौदह सौ सालों से सीना कूबी कर कर के उनके गुनाहों की तलाफ़ी कर रहे हैं.
मियां अब्बास कहते हैं की वह होते तो उनको जलाते न, बल्कि क़त्ल कर देते. 
बाप का राज हो गया था कुछ दिनों के लिए. इन इंसानियत सोज़ मज़ालिम के अंजाम में आज दुन्या की तमाम क़ौमों पर इन्तेक़ाम का भूत सवार हो चुका है. अगर ऐसा है तो कोई तअज्जुब की बात नहीं.
मैं ने माना कि वहशत का दौर था, उस वक़्त तमाम क़ौमें वहशत का शिकार थीं मगर कोई उनमे मुहम्मद जैसा घुटा पैग़म्बरी का दावे दार नहीं हुवा जो अपना नापाक साया सैकड़ों साल तक इंसानी आबादी पर क़ायम रखता.
क्या मुसलमान इस बात के मुन्तज़र हैं कि अली का जवाब उनको दिया जाय, जैसे कि स्पेन में हुवा, इससे पहले तर्क इस्लाम कर दें. 
डेनमार्क के दानिश मंद की राय मानते हुए अज़ ख़ुद क़ुरआनी सफ़्हात को नज़रे-आतिश कर दें.
इस्लाम को छोड़ कर ईमान की राह अख़्तियार करें और मोमिन बन जाएं. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment