अल्लाह बनाम क़ुदरत
अल्लाह कुछ और नहीं यही क़ुदरत है, कहीं और नहीं,
सब तुम्हारे सामने यहीं मौजूद है.
अल्लाह के नाम से जितने नाम सजे हुए हैं,
सब तुम्हारा वह्म हैं और साज़िश्यों की तलाश हैं.
क़ुदरत जितना तुम्हारे सामने मौजूद है उससे कहीं ज़्यादः
तुम्हारे नज़र और ज़ेहन से ओझल है.
उसे साइंस तलाश कर रही है.
जितना तलाशा गया है वही सत्य है,
बाक़ी सब इंसानी कल्पनाएँ हैं .
आदमी आम तौर पर अपने पूज्य की दासता चाहता है,
ढोंगी पूज्य पैदा करते रहते हैं और हम उनके जाल में फंसते रहते हैं.
हमें दासता ही चाहिए तो अपनी ज़मीन की दासता करें, इसे सजाएं, संवारें.
इसमें ही हमारे पीढ़ियों का भविष्य निहित है.
मन की अशांति का सामना एक पेड़ की तरह करें जो झुलस झुलस कर धूप में खड़ा रहता है, वह मंदिर और मस्जिद की राह नहीं ढूंढता,
आपकी तरह ही एक दिन मर जाता है .
हमें ख़ुदाई हक़ीक़त को समझने में अब देर नहीं करनी चाहिए,
वहमों के ख़ुदा इंसान को अब तक काफ़ी बर्बाद कर चुके हैं,
अब और नहीं.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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