नामी गिरामी
गहरवार ठाकुर वंसज के एक पुरुष हुए जिनका काल्पनिक नाम - - -
नामी गिरामी रख कर मैं उनका संक्षेप में इतिहास बतलाता हूँ - - -
नामी गिरामी रात को सोए तो सुबह उठ कर परिवार और समाज के लोगों को इकठ्ठा किया और एलान किया कि - - -
मैंने रात को नींद के आलम में अपनी यवनि (मुसलमान) उप पत्नी का झूटा पानी पी लिया है, इसलिए अब मैं हिन्दू धर्म में रहने योग्य नहीं रहा .
मैं कालिमा पढ़ के मुसलमान हो रहा हूँ.
और वह पल भर में मुसलमान हो गए.
नामी गिरामी के निर्णय को सुनकर महफ़िल अवाक रह गई
और माहौल में मौत का सा सन्नाटा छा गया .
पंडितों और प्रोहितों ने उन्हें हज़ार समझाया और प्रयास किया कि वेद मन्त्रों के अनुष्ठान में इसका निदान है, मगर नामी गिरामी इसके लिए राज़ी न हुए, तो न हुए .
नामी गिरामी के निर्णय से परिवार पर विपत्ति ही आ गई,
दो छोटे भाइयों ने घर बार छोड़ कर दूर देश बसाया,
दो हिन्दू पत्नियों में से एक ने वैराग ले लिया और
दूसरी ने नामी गिरामी का साथ दिया .
नामी गिरामी शेरशाह सूरी के गहरे प्रभाव में थे,
उसके पतन के साथ साथ नामी गिरामी पर भी ज़वाल आया,
उन्हें अपना राज्य छोड़ कर दर बदर होना पड़ा.
मैं जुनैद मुंकिर उन्हीं नामी गिरामी कि चौदहवीं संतान हूँ.
मेरे भीतर उन्ही पूर्वजों का हिदू ख़ून प्रवाह कर रहा है.
मुसलमान गहरवारों का अपने हिदू गहरवारों से हमेशा संपर्क रहा है .
मुझे अपने एक बुज़ुर्ग की चिट्ठी आई कि - - -
आपके लिए हमेशा द्वार खुले हैं, चाहें तो घर वापसी कर लें, स्वागत है.
मै ने उनको जवाब दिया कि
आप अनजाने में वही ग़लती मुझ से करवाना चाहते है
जो मेरे पूर्वज नामी गिरामी ने किया था.
उनकी मजबूरी थी कि उस समय इस्लाम के अलावा
उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था
मगर 400 सालों बाद मेरे पास विकल्प है,
मैं मुसलमान से हट कर मानव-मात्र हो गया हूँ.
अब मानव धर्म ही मेरा धर्म है.
इस दास्तान को बयान करने की वजह यह है कि मेरा ज़मीर चाहता है
कि मैं अपने हिन्दू भाइयों को भी स्वाभाविक सच्चाइयों से आगाह करूँ,
उनकी ख़ामियां और ख़ूबिया उनके सामने रखूं ,
ख़्वाह परिणाम कुछ भी हो .
सत्य कभी हिदू या मुसलमान नहीं होता.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
No comments:
Post a Comment